इंसान भी किसी को इज़्ज़त उसके दौलत,संपत्ति,रुत्बे,उसके वक़्त और अपने निजी स्वार्थ को देखते हुए देता है। ये सब तो अस्थायी हैं,समशान से आगे न जा पाई है!काश इंसान किसी को इज़्ज़त उसके इंसानियत के वजह से देता,जो सदैव उसके पास अमर बन के समाई हैं। #respect#value
छत्तीसगढ़ के बग़ीचे में अब शायद रहूँगा मै शान से। खो रहा हूँ अपना अस्तित्व,जो रहता था पहचान में। हर जीव हो जाएंगे बेघर कैसे दूंगा उनको मकान मे? जब हो जाऊंगा तबाह तो कैसे पनपे गा नया जहान ये? अगर आज मैं न रहूँगा तो तुम मनुष्य भी कैसे बचोगे? कोयले को ही कब तक स्वर्ग से निकालने की सोचोगे?
अगर करना हो कुछ मेरे लिए तो बस इतना एहसान करना। मेरे ही तरह किसी और जंगल को काटने की भूल मत करना।। #savehasdeo
कितना सुंदर होगा नज़ारा,जब साफ-सुथरा होगा पर्यावरण हमारा? प्रदूषित करके हमने हर दिन है गुजारा,ये कैसी तकलीफ तुम पर हैं सारा, न केवल तुम्ही को बल्कि सभी जीव-जंतुओं को कर दिया है हमने बेसहारा, एक पेड़ अपने स्वांस के नाम पर लगाओ,आप सभी लोगो से है ये एक नारा, अगर अभी से हमने न दिया सहारा,तो भूल जाओ की कभी था पर्यावरण हमारा।
तन्हाई एक घर है, जो बिछड़ो का बड़ा शहर है, जहां हर वक़्त उठता खामोशियों से धीमा लहर है, न जाने लोग इसमे कैसे बिता बैठते है अपना हर पहर, डर लगता है,कहीं बन के न आ जाए ये ज़िन्दगी में कहर।
अपनी साँसों को अहमियत देना सीख लो जनाब, हरपल दुनिया मे मिल रहा हैं लोगो को इसका जवाब, बेवज़ह बाहर न निकला करो,लग जाए न इस रेस में नंबर तुम्हारा, घर पर ही बैठ कर सब्र करो,क्या पता ज़िन्दगी न मिलेगी दोबारा ?
किराए के ज़िन्दगी में भी लोग कितना गर्व से इतराते है, लालच करते हुए न जाने इनके पास कितने ईमारते है, किसी का अच्छा न हो जाये ये सोचकर घबराते हैं, ऐसे ही लोग बड़ी शान से तकलीफों में मरजाते है,
कभी किसी का भलाई भी दिल से किया करो, वरना पहली फुर्सत में ही यहां से निकला करो।।
ये कैसी मायावी दुनिया का अनोखा लत है, जहां धोखा मिले वैसी ही जगह पर छत है। प्यार से ज्यादा नफरत निभाने में तर्क है, एक दूसरे से मिल जाने में कैसा फ़र्क है। अपने-अपने राह पर चल दिये बनकर समझदार, अब दूर रहकर ही जी लेंगे,कहते है सब वफ़ादार।
उनका यूँ बेवजह जाना,मानो दिल के लिए गहरी दर्द बन गए, गर्मी के मौसम में मानो,रूह के लिए सिसकती सर्द बन गए, हमारे बिताये हुए पलों के सुनहरे लम्हे,हमे कर्ज़ दे गए, बिन तुम्हारे तड़प-तड़प के जिए क्या यही फ़र्ज़ दे गए?