न जानें किस बात का ग़म है,न जानें क्यूं खफा
हैं तु मुझसे, इस बात का जरा तो ऐतबार हो ।
देख तु नजरें न चुरा मुझसे मिलने दे इन्हें,
कम से कम आंखें तो दो से चार हों।
तुम्हें क्या खबर मैं रब से रोज यही दुआ करता हूं,
तु गर सड़क के उस किनारे पर है, तो इस पार हो
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अगर तुम्हारा हमसे दिल न लगा
तो दिल दुखेगा सही ।
पर ऐसा नहीं है कि कहीं
लगेगा नहीं।
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तुम मेरी कविताओं सी खुबसूरत
में तुम्हारी खुबसुरती से, बेहाल प्रीयें।
मैं Ukraine सा दबा रहता हूं ,
तुम्हारा गुस्सा Russ सा विक्राल प्रीयें।-
तुम beutiful सी लड़की,
मैं चंचल सा बालक प्रीये।
तुम पापा की परी,
मैं मोहल्ले का नालायक प्रीयें।
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Quote of the day..
पेड़ को मिट्टी से अलग
कर देना
उसके लिए आजादि नहीं होती।
( रविन्द्र नाथ टैगोर )-
मैं सिधा सादा गंवार लड़का
तुम्हारे हैं नखरे हजार प्रीयें।
तुम लेती पत्तीयां नोटों कि अपने पापा से
मुझपर पुरे मोहल्ले का हैं,उधार प्रीयें।-
मर्द के गलतियो को औरतें पेनशील
समझ कर उनकी गलतीया,
मिटाने का प्रयास करतीं हैं।
मगर वे भुल जाति हैं कि कलम से लिखें
लिखावट को मिटा कर नहीं, पन्ने
को फ़ाड़ कर किस्सा खत्म किया जाता है।-
मिल जाए गर वो सख्श तो उससे
पुछुं मैं कि क्या सोच कर बनाया
मिलने पर तोहफ़े
लेने देने का
रीवाज।
गरीब आदमी किसी
से मिलने -जुलने
से डरता है।-
तुम्हें किसी और का सोचकर
कुछ इस तरह से घबराने लगता हूं मैं।
जैसे कि हुगली नदी में टिका हावड़ा पुल
हां कुछ उसी तरह ☺️ थरथराने लगता हूं मैं।
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