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हे भारत माँ! मैं तुझे एक ख़त लिखता हूँ,
उस ख़त पर मैं अपने दस्तख़त लिखता हूँ।
दस्तख़त इसलिए, कि मैं अपनी बातों का गवाह बन जाऊँ।
तेरे वास्ते मैं अपने लफ़्ज़ों से अमिट हो जाऊँ।
ना तो मैं जवान हूँ माँ, ना कोई देश का नेता हूँ,
पर माँ, तेरे हर बेटे सा, मैं भी तो एक बेटा हूँ।
तेरी हर वफ़ा का क़र्ज़ मैं अपने तरीक़े से निभाऊँगा,
एक आम इंसान की देशभक्ति पूरे हिंदुस्तान को सुनाऊँगा।
मैं जो कुछ भी करूंगा, पूरी शिद्दत से करूँगा,
इस वतन का नाम रोशन अपने कर्मों से करूँगा।
हर ज़ुबान पर नाम हरदम मेरे देश का ही रहेगा,
आख़िरी साँस तक हर कोई मुझे हिंदुस्तान का ही कहेगा।
मैं फ़ौजी तो नहीं, जो जाकर सीमा पर लड़ जाऊँगा,
पर बात मरने की आई तो तेरी ख़ातिर मर जाऊँगा।
मेरे ख़ून के हर एक क़तरे पर माँ, तेरा आभार रहेगा
, अपने देश की इस मिट्टी के लिए, तेरा बेटा तैयार रहेगा।
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प्रश्न उठा हृदय में, कि कौन हूं मैं,
अतःकरण से ध्वनि उठी, मौन हूं मैं ।-
बातों से ज्यादा बर्ताव चुभता है,
खामोशी से लगे ज़ख्म का,
हर घाव चुभता है ।
माना मैं हंसकर टाल देता हूं,
अक्सर ऐसी बातों को,
दिल पत्थर सा रख के भी,
ना जाने, बार बार चुभता है ।-
बिना जाने हालात, कैसे इल्ज़ाम लगा देते हो।
सोचे समझे बगैर ही, अपनी राय बना लेते हो ।
खुशकिस्मती भी भला कैसे साथ देगी,
जब कल्पनाओं को ही विश्वास बना लेते हो ।-
फिर से अधूरी सी हसरतें,
और अधूरा सा मलाल रह गया ।
होली उसे रंगे बगैर बीती,
और हाथों में मेरे गुलाल रह गया ।-
कभी कुछ नहीं बोलना सीखा,
तो कभी, कुछ सही बोलना सीखा।
फिर बदलते वक्त के दौर में मैने,
जो बोलना था, बस वही बोलना सीखा।-
कुछ मेरी गलतियां हैं,
कुछ तुम्हारी गलतियां हैं।
आखिर किसे इल्ज़ाम दें,
कि आखिर किसकी गलतियां हैं।
मैं, तुम और ये जमाना,
यहां सब गुनहगार है,
यहां तो इंसान होने की,
फितरत ही गलतियां हैं।-