प्रश्न उठा हृदय में, कि कौन हूं मैं,
अतःकरण से ध्वनि उठी, मौन हूं मैं ।-
बातों से ज्यादा बर्ताव चुभता है,
खामोशी से लगे ज़ख्म का,
हर घाव चुभता है ।
माना मैं हंसकर टाल देता हूं,
अक्सर ऐसी बातों को,
दिल पत्थर सा रख के भी,
ना जाने, बार बार चुभता है ।-
बिना जाने हालात, कैसे इल्ज़ाम लगा देते हो।
सोचे समझे बगैर ही, अपनी राय बना लेते हो ।
खुशकिस्मती भी भला कैसे साथ देगी,
जब कल्पनाओं को ही विश्वास बना लेते हो ।-
फिर से अधूरी सी हसरतें,
और अधूरा सा मलाल रह गया ।
होली उसे रंगे बगैर बीती,
और हाथों में मेरे गुलाल रह गया ।-
कभी कुछ नहीं बोलना सीखा,
तो कभी, कुछ सही बोलना सीखा।
फिर बदलते वक्त के दौर में मैने,
जो बोलना था, बस वही बोलना सीखा।-
कुछ मेरी गलतियां हैं,
कुछ तुम्हारी गलतियां हैं।
आखिर किसे इल्ज़ाम दें,
कि आखिर किसकी गलतियां हैं।
मैं, तुम और ये जमाना,
यहां सब गुनहगार है,
यहां तो इंसान होने की,
फितरत ही गलतियां हैं।-
तू चल
तू खुशियों की किलकारी बन,
उम्मीद की चिंगारी बन ।
कोई चाह के ना गिरा सके,
औरों पे अब तू भारी बन।
तू चीर कर के आंधियों को,
आगे बढ़, बढ़कर निकल....
तू चल..., तू चल , तू चल.... तू चल ।
कर विश्वास जितना हो सके,
बस खुद को ना तू खो सके।
अपने कर्म पे विश्वास रख,
और कर तू जितना हो सके।
ना कोशिशों से, हार अब तू,
चाहे हो कितना विफल.....,
तू चल....तू चल, तू चल .....तू चल।
है मां की एक उम्मीद तू,
और पिता की भी तू आस है ।
ना भूल उनकी कदर तू,
वो, जो भी तेरे पास है।
लेकर भी उनको साथ तू,
अब जीत की तैयारी कर...
तू चल ....तू चल, तू चल.....तू चल।
एक दिन में सब कुछ कठिन है,
पर मुश्किल नहीं, जब अडिग हैं ।
क्षण भर में मिल जाता है जो,
क्षण भर में खो जाता भी है ।
मंजिल से ना तू मोह कर,
बस पा ले और उपयोग कर...
तू चल...तू चल ,तू चल....तू चल।-