बड़ी उम्मीद लिए
आशा वाली नाव में बैठी थी..
पर वो मुझे निराशा वाले किनारे पर
उतार आयी...
अब इस पार कोई है तो नहीं मेरा..
पर जिस मिट्टी ने पराई हो कर भी
मुझसे माँ सी लाड़ की,,,,
उसे छोड़, आगे बढ़ जाऊँ,,
....
....
नहीं...
ज़रूरतें मेरी,,
इतनी ख़ुद-ग़रज़ तो नहीं...!!
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जब बहू मायके जाने को तैयार हो तो सास
लोग कहती है क्या मलगुब्बा मारने जा रही
हो अगर वही अपनी बेटियों के लिए सोचे तो
और कहीं बहू कह दे आपकी बेटी क्या करने
आ रही तब क्या इज़्ज़त रह जाएगी उनकी
तब लोग कहेंगे बहू जुबान चलाती है-
ससुराल का दूसरा नाम है "पिंजरा"
जहां पंखों को ज़ख्मी कर
उड़ने के लिए छोड़ा जाता है।
(अनुशीर्षक में पढ़ें 👇)-
मैं कहानी में एक नया
मोड़ ला रहा हूं...💝
मैं तुमसे मिलने कानपुर
आ रहा हूं... 🥰-
🤱औरतों के मायके में अगर एक
🍐अमरूद का🌳पेड़ भी हो तो वो उसकी तुलना ससुराल की चार बीघा जमीन के बराबर कर देती हैं नाशपीटी🤨
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"बहुत जोर से चीखने का मन कर रहा है यहां,
पर यहां तो जोर से बोलना भी माना है.."
ससुराल में बैठी एक लड़की ने ऐसा कहा।-
"Kaand"🤐 aise karna😜
Ki aap 👉"sasural"🏠 Walon se
Nahi❌ , "sasural wale" 😍
"Aap"👰 se darre..😆-
यूं तो हर कोई चाहता है ससुराल में बहु ना बेटी बन जाये
सब वहां अपना ले दिक्कत तनिक भी ना आये
मुश्किल होती हैं अजनबियों को अपनाने में
आसान उनके लिए भी नहीं उसे बेटी बना लेने में
एक तरफ से क्या होगा उसे भी तो कुछ समझना होगा
कोशिश के साथ कुछ कसौटियों से गुजरना पड़ता हैं
खुद को उस घर का होना होता हैं
ऐसे ही नहीं बहु से बेटी बनना होता हैं।
अगर कुछ टूटे तो मासूमियत से उसकों कहना होता हैं
डांटे भी दे तो उसे प्यार समझ के रखना होता हैं
बड़ों को सम्मान और छोटों को प्यार के साथ ढलना होता हैं
घर की बात को घर में ही रखना होता हैं
ऐसे ही नहीं बहु से बेटी बनना होता हैं।
घर में पूरी होगी जरूरतें सबकी मगर देर से
कुछ गलत समझनें से पहले ज्यादा जरूरी क्या है ये सोचना होता हैं
अपने खर्चों से पहले जेब का वजन भी देखना होता हैं
जो कम हुई रोटी तो चावल खाकर सोना पड़ता हैं
बहु को भी बेटी के दायित्वों से गुजरना होता हैं
ऐसे ही नहीं बहु से बेटी बनना होता हैं।
यूं ही नहीं किसी के सामने घर के राज खोलें जाते हैं
वो जब तक उन्हें समझकर सम्भालें ना उसे जिम्मेदार नहीं कहते हैं
कुछ नये कदम उठाने से पहले घर के बारे में एक दफा सोचना होता हैं
अपने सोच के साथ ससुराल के संस्कार और परपंरा मे ताल-मेल बिठाना होता हैं
बेटी की तरह घर को संवारना होता हैं
खुद को उस घर का होना पड़ता हैं
ऐसे ही नहीं बहु से बेटी बनना होता हैं।
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बेटियां...
हर उस बेटी को
जो घर से विदा
होते वक्त
अपने माँ बाप और भाई
के गले लगकर
बिलख पड़ती है
पर उस कुछ पल भर
के गले लगने में न जाने
कितने सदियों
का सुकून छिपाकर वो
ससुराल चली जाती है
शायद ही इससे बेहतरीन
हग डे हो ..💕✍-
❣️घर का सारा काम निबटा के, फिर ऑफिस जाती हु,
शाम को घर लौटकर, फिर काम में लग जाती हु,
मां जी, फिर भी क्यों आपकी बेटी न मैं बन पाती हु?
जींस नही पसंद आपको,तो सूट साड़ी पहन,खुद को सजाती हु,
मां जी, फिर भी क्यों आपकी बेटी न मै बन पाती हु?
पैर सुबह जब छूती हु, कब आपका मन मैं छू पाऊंगी,
कभी तो बेटी वाला स्नेह आपसे पाऊंगी,
बस ये सोच रह जाती हु,
मां जी, फिर भी क्यों आपकी बेटी न मैं बन पाती हु?
आपके कहने पर व्रत सब मैं रखती हु,
पूजा पाठ सब धर्म आपके हिसाब से करती हु,
मां जी, फिर भी क्यों आपकी बेटी न मैं बन पाती हु?
कहो जो आप मायके नही जाना,
नही होता अब काम मुझसे तेरे जाने पर,
तो मन कचोट के बस अपना चुप हो जाती हु,
मां जी, फिर भी क्यों आपकी बेटी न मै बन पाती हु?
मायके से तो बस लिया हमेशा मैने,
ससुराल में हर महीने का हिसाब आपको बतलाती हु,
हो फिजूल खर्ची कभी जो, तो डांट भी खाती हु,
मां जी, फिर भी क्यों आपकी बेटी न मैं बन पाती हु?
सबसे मिलजुलकर हस बोलकर, मेहमानों में घुल मिल जाती हु,
हर महीने, तनख्वा तक अपनी, आपके हाथों में थमाती हू,
मां जी, फिर भी क्यों आपकी बेटी न मैं बन पाती हूं?❣️-