In Kaliyug
there's only one "living" God,
Bajrangbali🙏🏼🚩🌺🌺🌺📿
tell Him, ask Him,
HE WILL UNDERSTAND🙏🏼-
कोई रंग मच पे ...
उतार के ...
खुद को इस तरह तैयार किया ...
खुद पर ही हंस कर इस ...
तरह अपनी हर चाहत का ...
ससकार किया ...
कोई उतरा मन में तो लोटा
दिया उन्हीं पैर ...
क्योंकि दिल के ताले को
ज़रूरत नहीं ... चाबी की
क्यों तुमने उस ताले को..
खोलने में अपना समय ...
बेकार किया .....-
जो राजा
स्वार्थ के दुराचरण को छोड़कर
परमार्थ के पथ पर
संपूर्णता से सदाचार का आचरण करे
बुद्धि के भेद के भाव को त्याग कर
सम्यक दृष्टि से प्रजा के हृदय पर राज करे
वही राजा है राम-
सुने सबकी वो मगर फल दे कर्मानुसार
ऐसा मेरे बजरंगी बाला है
एक हाथ गदा सुशोभित हनुमते
एक हाथ वेणुधारी माला है
जय श्री राम जय बजरंग बली-
न काटो अपनी जड़ों को
यह धरोहर सदियों पुरानी है
इतिहास गवाह रहा सभी को
यहाँ पर ही तो पनाह मिली है
सम्मान मिला हर संस्कृति को
हर सभयता यहाँ फली-फूली है
ज्ञान दिया विज्ञान दिया दुनिया को
इससे ही तो हमें पहचान मिली है
आओ नमन करे धरती माता को
क्योकि यही हमारी कर्मभूमि है-
आज कल प्रेम में सत्य है ही कहां
सबको तन चाहिए भाव है ही कहां
प्रेम करना है तो, मीरा जैसा करो
हर पहर प्रेम में डूबे रहो
( पूरी कविता के लिए अनुशीर्षक पढ़े 👇)-
कभी कभी व्याकुल मन
प्रश्न करता है रुककर कुछ क्षण,
पहाड़ों के उस पार क्या है
शांत हवा या धुंध छाया हुआ है,
इस पार की ही भांति फूल खिले हैं
या फिर दिलों में शिकवे गिले हैं,
आख़िर कब तक घाटियां चीखती रहेंगी
बिखरकर जीवन समेटना सीखती रहेंगी,
लोगों को प्रतीक्षा है किसी के आने की
कृष्ण या बुद्ध की भांति पौरुष जगाने की,
स्वयं को भी आंकलित कर लेते कभी
आवश्यकता ही ना रह जाती किसी को बुलाने की,
संभव है परिदृश्य एकाएक परिवर्तित नहीं होगा
परंतु कुछ तो मानव अंश अंतर्मन में बचा रहेगा...@
-
थोड़ा और गोता खा लेते
हिंद महासागर में...
पर मेरे विद्यालय पर टिप्पणी...!
ये नहीं करना था...
/अनुशीर्षक/-
मुझे किसी के धर्म से कोई दिक्कत नही
मुझे धर्म की उस परिभाषा से दिक्कत है जो सामने वाले को इस लिए नीच समझती है क्योंकि वो किसी ओर धर्म से है-