चांद और मन की सूनी गलियां,
जैसे बाग़ और अधखुली कलियां,
कभी सुकून कभी चुभने वाली चांदनी,
जैसे खट्टी मीठी यादों की चाशनी,
अभी अभी हवा की हुई सरसराहट,
जैसे किसी के आने की हो आहट,
शायद चांद को भी है तलब लगी,
जैसे किसी से मिलन की आस हो जगी,
आसमां और चांद की सरगोशियां,
जैसे चांदनी रात और मेरी खामोशियां...@
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DoB - 22june
कभी कभी व्याकुल मन
प्रश्न करता है रुककर कुछ क्षण,
पहाड़ों के उस पार क्या है
शांत हवा या धुंध छाया हुआ है,
इस पार की ही भांति फूल खिले हैं
या फिर दिलों में शिकवे गिले हैं,
आख़िर कब तक घाटियां चीखती रहेंगी
बिखरकर जीवन समेटना सीखती रहेंगी,
लोगों को प्रतीक्षा है किसी के आने की
कृष्ण या बुद्ध की भांति पौरुष जगाने की,
स्वयं को भी आंकलित कर लेते कभी
आवश्यकता ही ना रह जाती किसी को बुलाने की,
संभव है परिदृश्य एकाएक परिवर्तित नहीं होगा
परंतु कुछ तो मानव अंश अंतर्मन में बचा रहेगा...@
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रात जैसे लहराती नदी है कोई
और सपने नदी के बुलबुले,
एहसास जैसे नदी का पानी है
और धड़कनें इठलाती लहरें,
विचार जैसे गहरे भँवर हैं
और मन कोई गोताखोर,
बुलबुले बनते बिगड़ते रहते हैं
लहरें उठती गिरती रहती हैं
गोताखोर डूबता उतराता रहता है,
और नदी अनवरत बहती रहती है... @-
ख़ुद का ख़ुद में हासिल हूं ,
नहीं खलती अब कोई कमी,
ना कोई चाहत ना कोई हसरत,
हर ख़्वाहिश पर है ज़र्द जमी... @-
वो फूल है फ़िज़ा में ख़ुश्बू बिखेरने दो ,
ज़िस्म जानकर एहसास जरूरी है क्या... @-
अनादि अनन्त आनंद है शिव,
सकल चराचर परमानंद है शिव,
समस्त विश्व में व्याप्त अगोचर
सत्यम शिवम् चिदानंद है शिव...
सगुण साकार निराकार है शिव,
सकल सृष्टि का श्रृंगार है शिव,
सकल जीव जगत की माया से परे ,
सकल सुखों का आगार है शिव... @-
वक्त कब ठहरा है किसी के लिये,
कभी दरिया कभी सहरा है किसी के लिये,
दिल का शोर और ज़ुबां की ख़ामोशी,
कभी मरहम कभी गहरा घाव है किसी के लिए...@
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दुनियां की भीड़ में,
खामोशी की नीड़ में,
दिल कसमसाता है,
मन अकुलाता है,
फिर एक लम्हें में सब ठहरकर,
सब शब की तरह बिखर जाता है... @-
श्वांस भी तुम, हर आस भी तुम
इस जीवन का आभास भी तुम
तुमको मन ढूंढें कण कण में
दूर भी तुम और पास भी तुम....@
ये चमक ये दमक, जीवन में महक
सब कुछ सरकार तुम्हई से है.... 🙏🙏
हर हर महादेव 🔱-