अंदर है
समंदर है
खामोश सा
बवंडर है
धोके का
ख़ंजर है
दर्द का
मंज़र है
हो चुका
खंडहर है
दिल अभी
बंजर है
ना कोई
रहबर है
ख़्वाब भी
बेघर है
खामोश रहूँ
बेहतर है
जो हुआ
मुक़द्दर है ©भिमेश भित्रे-
Mohhabat ka Samandar hoon Main,
Me Sirf Kinare Par Rahne se Nahi,
Iski Gehraiyon Mein doobne se Milti hoon...!!!-
कुछ पाने के लिए कुछ दाव पर लगाना ही पड़ता हैं
प्यास बुझाने खातिर समन्दर को खुद प्यासा होना पड़ता हैं।
जिंदगी की कीमत का अंदाजा तुम्हे क्या पता होगा
फौजियों से पूछो जिन्हें मौत को गले लगाना पड़ता हैं ।
तेरी जुल्फों में मैंने एक जिंदगी का अर्शा गुज़ार दिया
ये पल आते ही आंखों को ख्वाब क्यों तोड़ना पड़ता हैं ।
आज के जमाने में अफवाहों का ज्यादा बोलबाला हैं
सच को भी यहां कई इम्तिहानो से गुजरना पड़ता हैं ।
अपनी अना में रहोंगे तो फिर मिलेगा क्या
दुआ पाने के लिए मौला के सामने सर झुकाना पड़ता हैं ।
भरोसे में मत रहना काले बादलों में छिप जाता हैं महताब
अंधेरा फैलने से पहले ही चराग को जलाना पड़ता है ।
तकदीर के खेल के आगे आखिर चली ही किसकी है
जिसको चाहा वो मिला नहीं जो मिला उसको चाहना पड़ता हैं ।-
विशाल समंदर हो, पहचान अपनी उससे बड़ी रखना।
तूफान मंज़िल में हजार हो, पैरों को वृक्ष की जड़ से मजबूत रखना।।-
थी परेशानियां पर उनसे हम अनजान ही रहे
रात आई फ़िर उनके ख्वाबों के तराने निकले
मेरी मजबूरियों से खु़दा भी बेपरवाह रहे
आँख हमारी रोई नहीं कि हमारे ही सारे गुनाह निकले
दरिया में बह के भी आँसू बेरंग ही रहे
पलकों से उतरकर भी मोती हमारे ही अंग निकले
वो हमसफ़र होके भी किनारे ही रहे
मोहब्बत के समंदर में सफर करने हम अकेले ही निकले
वो बाहों में सो के भी बेज़ार ही रहे
हम आँखों में डूबे तो बेवफाई से तार तार निकले
झुलसती गर्मी में वो अपने आशियाने ही रहे
चाहत की तपिश में अपनी काया झुलसाने हम ही निकले-
Lazmi h tera ruthna ,
Zruri h mera mnana .
Jb mohabbat smundr ki gahraiyon se ho ,
To zruri h in khatte mithe palo ko smbhalna.-
ये समंदर भी तेरा ही शागिर्द निकला "निहार"
मुझे खुद में डूबो कर साहिल पर छोड़ गया..!!-
दर्द भी अब दर्द नही देता..
थोडी खैरियत आजमाई जाय..?
बेचैनी का समंदर तो तैर गये..
क्या सुकून की कुछ बुंदे पियी जाय ??-
डूब कर जिसमें...
मैं फिर ना निकला...
महबूब मेरा ऐसा...
गहरा समंदर निकला...-
शहर...
ना जाने किस शहर में हूँ
मैं हर एक के नज़र में हूँ ।।
हर पल साँस छूट रही है
लगता है मैं समंदर में हूँ।।
ना जाने किस शहर में हूँ
एक अजनबी सफ़र में हूँ।।
भीड़ से भरी महफ़िल है
पर तन्हाई के मंज़र में हूँ।।
ना जाने किस शहर में हूँ
हर जबान की खबर में हूँ।।
नहीं पहचान रहे लोग मुझे
ना जाने मैं किस घर में हूँ।।
ना जाने किस शहर में हूँ
मकानों से घिरे भँवर में हूँ।।
नींद टूटी तो पता चला कि
मैं तो अपने ही बिस्तर में हूँ।।...😴-