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मुझसे नफ़रत करने वालों, मुझे गलती से भी कभी बदनाम ना करना,
खुद साजिश रचके, मुझपे झूठे इल्जाम ना देना;
कदर हैं जमाने के कुछ अच्छे लोगों की, हूं इसलिए ख़ामोश खड़ा,
वर्ना, तूफ़ान के सब्र का कभी इम्तहान ना लेना।
🖋️🖋️🖋️ Kumar Anurag-
साज़िशों में जुटा सारा शहर लगता है
रंजिशों से सहमा मेरा मन लगता है।
डर-डर के जीने की हमे आदत हुई है
हया ही हमारी अब विवशता बनी है।
तुम्हारे क्रोध से, कुटीया मेरी जल रही
उदास चेहरे की शिकायत सरेआम हो रही
बेइंतिहा मोहब्बत कि थी कभी किसी से
जलती हुई प्यार कि लौ देखो राख हो रही।
उलझने बढ़ रही एहसासों के समंदर में
सुलझना जानकर भी,बहकती हूं तेरी राहों में।-
जो परदे में है उन्हें बेपरदा कर दु क्या,
रची है जो साजीसे उन्होने उसे सारे आम कर दु क्या,
हमे तो हमेशा धोखे में रखा था उन्होंने,
अब उनके धोखे के चर्चें उनके ही महफ़िल में कर दु क्या.......!!-
तेरी यादों के क़त्ल की साज़िश,
सौ बार की है....
हर बार ख़ैरियत से आकर,
मेरे ज़हन में बैठ जाती हैं...-
गुमान है उनको हमारी ज़िंदगी मे उनका मुकाम देख कर
साजिशें है करी कइयों ने हमारा उन पर ऐतबार देख कर।
बेखबर थे हम उनकी चाहत में हर एक साजिश से
बे कस हुए है देखो हर एक वक्त की साजिश देख कर।-
अर्ज़ किया है.....
ज़माने ने क्या साजिश की है,
तुझे मुझसे जुदा करने के लिए।
उसे कहां पता....
तेरा एहसास ही काफी है,
तुझे मोहब्बत करने के लिए।-
साजिशो के थोड़ा हम भी
शिकार हो गए।
जितना दिल साफ रखा था,
उतने ही गुनहगार हो गए।-