ज़रूरी नही सबक हर चीज़ का सीधा सीधा मिले
थकना किसे कहते हैं, ये बैठे बैठे महसूस हुआ ।-
.... कविता......
देखो , मत करना विस्वास सघन ,
कितना भी कोई, खास लगे
दोस्तों,,,,,
वे जो,, अपनों की सूरत में रहते
जैसा, हम कहते , वो... कहते
लगा मुखौटा प्यार का,
बस मीठी - मीठी बातेँ करते
रखते मकसद, जता सके
कि, उनके होनें का एहसास लगे
ये वही है
जो साले,
खूब, हँस-हँस,
गले, लग-लग,
ससुरा के,,,,
जड़, काटने की फिराक में हैं
-
सब कुछ हवा है? तो हवा क्या है
दर्द की दवा दर्द है तो दवा क्या है
इश्क़ को कुछ लोग मज़ा कहते हैं
इश्क़ मज़ा है तो वो मज़ा क्या है
छोड़ गया कोई तो बेवफ़ा हो गया
कभी सोचा जाने की बजह क्या है
आरज़ू ओ रजा सनम की पता है
जानते ही नही रज़ा-ए-ख़ुदा क्या है
कुल शय में बजह रखी है ख़ुदा ने
बताओ इस जहाँ में बेबजह क्या है
शायद न सच न झूठ है हर जगह
ख़ुदा के अलावा हर जगह क्या है-
सबक
होता है कोई बुरा हमारे लिए
जैसे होते है हम बुरे किसी और के लिए
इस नफरत की चाह में हज़ारो दिल तोरे है
ना जाने कब कैसे किसी को छोरे है
अब ना वो दिन याद करना है हमें
उससे कुछ सिख आगे बढ़ना है हमें ||-
Zindagi roj sikhati hai sabak naye mujhko
Pr lagta hai ki Bachpan me kisine yeh bataya tha mujhko-
क़िताबें पढ़ ली बहुत आंखों का छल पढ़ना न आया
करि कोशिशें बहुत साफगोई से बातें कहना न आया।
अपने अंदर न झाँका इत्तिहाम से नवाज़ना ख़ूब आया
घूम आए लाख चांद सितारों में जमीं पे रहना न आया।
ख़ुद्दारी पे हर्फ़ आती रही अना अपने बीच में न लाया
नाफ़हम रहे तमाशाई भीड़ में अकेले बढ़ना न आया।
उफ़्फ़ न करि एहसास-ए-उल्फ़त को जाया होने दिया
चश्में'तर होते रहे वाबस्तगी का अज़ाब सहना न आया।
सफ़र में ग़र्क हुई कस्ती अपने ही पैरों में भवँर दे डाला
गमें'दरियां में डूबा रहा वक़्ते'दरियां में बहाना न आया।-
मोहब्बत की किताब के दो ही सबक याद हुए,
कुछ तुम जैसे आबाद हुए,
कुछ हम जैसे बर्बाद हुए..!!-