पतझड़👇👇-
वक़्त के जोड़ पे न बिकता है यकीं,
मैं हूँ अब भी वही, तेरे यकीं की जमीं।
अलगाव और बिछड़न कोई दास्तां नहीं,
तुम हो रुखसार,मैं प्रीत तुम मेरे कवि।
उम्र भर की कोई मेरी रिवायत ना रही,
आज में है तेरा साथ, काफ़ी है वही।
महकता है गुलब्बास, तेरे नाम का नहीं,
तुम हो ज़मीं, ज़िन्दगी, जाँ और ख़ुदी।
नीलम तुम, चाँद जैसे नूर लिए हम-नवा,
हो मेरा यकीं,तुम सा इस जहाँ कोई नहीं।-
तुम्हें क्या लगा,
मैं तुम्हें पढ़ती नहीं?
तेरे अल्फाज़ों में
खुद को ढूँढती नहीं?
तुमने अपना किरदार बदला,
लेकिन शैली का क्या?
उसे तुम कैसे बदल सकते?
जो तुम हो, उसकी पहचान नहीं मिटा सकते।
तेरे छोटे से बड़े,
लेखनी का दीदार मैंने किया है,
खुद के रूप को सजते हुए
बड़े अदब से निखरते देखा है।
मैंने तुममें खुद को पाया है,
तुझसे जुड़, खुद को परखा है,
भावों को आत्मसात कर
मैंने कई किरदार जिए हैं।
शायद तुम्हें पता भी न चले,
पढ़कर तुम्हें, मुझे सुकून मिलता है,
"मैं" का नहीं "हम" होता है,
एक सदी जीने का एहसास होता है।-
लिखूं एक ख्वाब,
या मैं हकीकत लिखूं,
तुम ही बता दो मुझे,
किस रूप में तुम्हें लिखूं।
दिल की ठंडक,
या आँखों की रेन,
हो कोई अफसाना,
या हो कोई भ्रम।
पास नहीं, दूर ही सही,
तुमसे जुड़ती है ख़ुशी,
सीने में बसी हर एक आस को
रिहाई मिल जाती है इस सदी।
तुम हो जैसे कोई सीप की माला,
मेरे मन को हर बार भाते हो,
दूरी का आलम बड़ा निराला,
तुमसे ही मिलवा देता है प्यारा।-
In the midst of chaos,
I’m finding my true self,
Evaluating the tasks
That I must perform.
Amidst the noise around me,
I seek to discern
Which direction is mine,
In this sea of distraction,
Which path I should take.
My mind jangles with pain,
Chaotic thoughts race on,
But I’ve held my ground,
Determined to stay on track
And make my life great.
What I seek, I’ve made clear,
No worries left unspoken,
A resolve to win this race,
Not against the world,
But against myself.-