Prakirti   (ķm pŗāķįŗţį)
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3--0--1--0
Joined 5 June 2020


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Joined 5 June 2020
16 AUG AT 15:46

संवाद 👇👇

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16 AUG AT 11:40

संवाद 👇👇👇

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11 AUG AT 21:04

सावन का झूला 👇👇

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10 AUG AT 22:01

आख़िरी संवाद👇👇

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10 AUG AT 19:47

आखिरी फूल 👇👇

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10 AUG AT 19:16

नीरस मन 👇👇

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10 AUG AT 12:05

स्वांग 👇👇

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7 AUG AT 10:11

रोम रोम में बसें हो तुम
जैसे चाँद से लिपटी हो चांदनी,
मेरे करणों क़ो हासिल आवाज में,
तुम्हीं हो वो रागनी ।

तेरे मेरे बीच की दुरी की दिवार,
कभी तोड़ तुम आना मेरे पास,
जहाँ ना हो कोई रिश्तों का बंधन
ना कोई बांधे कोई डोर की संगम।

मेरे मन में बस जाना तुम,
जैसे वर्षा बसती है रेनू की थाल में,
मेरे प्यासी कंठ की तृप्ति बन जाना,
जैसे मृग को मिल जाए जल रेतीले पनघट पर।

जिंदगी का हर आलम तुमसे सजता है,
जैसे प्यासे पंछी को मिल जाए सागर,
हर एक लम्हा तुमसे होकर गुजरे,
जैसे हर राग का अन्त हो किसी मधुर साज पर।

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26 JUL AT 22:27

दोस्ती 👇👇👇

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26 JUL AT 22:01

दिखावा👇👇

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