संवाद 👇👇
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Prakirti
(ķm pŗāķįŗţį)
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Joined 5 June 2020
7 AUG AT 10:11
रोम रोम में बसें हो तुम
जैसे चाँद से लिपटी हो चांदनी,
मेरे करणों क़ो हासिल आवाज में,
तुम्हीं हो वो रागनी ।
तेरे मेरे बीच की दुरी की दिवार,
कभी तोड़ तुम आना मेरे पास,
जहाँ ना हो कोई रिश्तों का बंधन
ना कोई बांधे कोई डोर की संगम।
मेरे मन में बस जाना तुम,
जैसे वर्षा बसती है रेनू की थाल में,
मेरे प्यासी कंठ की तृप्ति बन जाना,
जैसे मृग को मिल जाए जल रेतीले पनघट पर।
जिंदगी का हर आलम तुमसे सजता है,
जैसे प्यासे पंछी को मिल जाए सागर,
हर एक लम्हा तुमसे होकर गुजरे,
जैसे हर राग का अन्त हो किसी मधुर साज पर।-