_रुतबा_
ऐवज ए हुस्न से
मतलब नही-ए-गालिब..
नजरे बयाँ करती है
रुतबा-ए-शख्शियत...
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भव्य अट्टालिकाओं के
रुतबेदार चौखटों पर
उतरी
फूल सरीखे
नाजुक सी दूलहिनों
के हिस्से
सिर टेकने को
सीलन भरी दीवारें आईं-
_रुतबा_
रुतबा-ए-हुस्न गज़ब था उनका
और हम अंधे हो गए...
वजूद सांभालाने से पहले ही...
इश्क़ मे डूबकर गंदे हो गए.......
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लोग वाकिफ हैं
मेरी आदतों से,
रूतबा कम ही सही
पर लाजवाब रखती हूं...-
पहचान कफन से कहा होती जनाब,
रूतबा काफिला बया करता हैं;
मर्यत के पीछे का....!-
पहचान कफ़न से नहीं होती है दोस्तों...
लाश के पीछे काफिला बया कर देता है,
रुतबा किसी हस्ती का है...!!-
मैनें राहों से सवेरा बटोरा है
मंजिल ना मिली तो क्या आफताब सा रूतबा मेरा है
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पहचान सिर्फ व्यवहार और नियत से
होती है .....बाकी इंसान अच्छा हो या बुरा
वो इस जहां से जाने के बाद ही
असलियत सामने आती है ....इस
दुनिया के दिल की!!
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पैसा,पद व रूतबा क्या है,
प्रेम नहीं,तो जज़्बा क्या है।
झुका आसमां,चुप ये धरा,
सब लूट गया,बचा क्या है।
आखिर सब हँस रहे अब,
कहते हैं फिर,लूटा क्या है।
पैसा,पद सब रूतबा गया,
प्रेम है अभी,गया क्या है।-