होती अब हमको सिर्फ रात की पुकार है,
शिकायत किसी से,किसी से प्यार बेशुमार है,
ज़माने की तरह,अब हमारे भी चेहरे हज़ार है,
बिखरे किसी कोने में कुछ अनकहे अल्फाज़ हैं,
बताए नहीं हमने,अब भी कुछ राज़ हैं,
भूले तो नहींं पर नराज़गी छुपाए बैठे हैं
दिख न जाए कहीं,इसलिए मुस्कुराए बैठे हैं,
तनहाई और खुद से ही अब दिल लगाए बैठे हैं,
सुन न ले कोई,वो एक दबी आवाज़ है,
बताए नहीं हमने,अब भी कुछ राज़ हैं,
सौ दफा मिलेंगे फिर भी जान नहीं पाएंगे,
हमारे अलग-अलग रंग आप पहचान नहीं पाएंगे,
सब जान कर भी आप हमें अंजान ही पाएंगे,
अगर सही नहीं तो हमें गलत होने पर भी नाज़ है,
बताए नहीं हमने,अब भी कुछ राज़ हैं,
रोज़ ही मिलते कई नए चेहरे हैं,
छुपे हैं अंदर कुछ घाव गहरे हैं,
पर होठों पर सबके मुस्कानों के पहरे हैं,
रास्ता नहीं कोई,यही ज़माने के रिवाज़ हैं,
बताए नहीं हमने,अब भी कुछ राज़ है।
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