पसंद नहीं मुझे..
मेरे रंग पे,,
किसी और रंग का आधिपत्य...
स्वास रुद्ध होने लगता है
कुछ अंतराल पश्चात,, और मैं
हर सम्भव प्रयास कर
मुक्त हो जाती हूँ उस प्रभुत्व से ।
पर ये क्या कि
हर बार तुम्हारा प्रेम
पिछली बार से अधिक
गहरे और गाढ़े रंग का लेप
मेरे मन पे
मल जाता है!! और मैं,
एवैं.. निर्द्वंद्व.. निःसंकोच..
जीने लगती हूँ
तुम्हें,,,,
,,,,,,,,
,,,,,,,,
फिर एक सदी तक।।
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