Shivam Chaubey   (Shivam©)
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चुप भी रहना है एक फ़न आख़िर
क्या ज़रूरत है बात की जाए
Joined 31 May 2017


चुप भी रहना है एक फ़न आख़िर
क्या ज़रूरत है बात की जाए
Joined 31 May 2017
15 OCT 2022 AT 17:07

तो क्या हुआ जो रह न सके ख़ुश-दिली के साथ
तुम भी किसी के साथ हो मैं भी किसी के साथ

अबके बरस न जाने कहाँ खो गया वो शख़्स
सालों से जो खड़ा था मेरी ज़िंदगी के साथ

उसने भी एक रोज़ गिनाए तमाम उज़्र
मैंने भी हाथ छोड़ दिया बेबसी के साथ

हैरत है दोनों अपनी कहानी में खुश नहीं
लेकिन सभी से मिल तो रहे हैं खुशी के साथ

हँसते हुए जो ख़ाब सजाए थे हमने वो
अब टूटते भी हैं तो बहुत ख़ामुशी के साथ

देखो तो तिश्नगी के सबब लोग मर गए
लाशें भी आ रहीं हैं कहीं से नदी के साथ

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26 JUN 2022 AT 14:54

आँखों से और दिल से आंसू आते हैं
इस मौसम में इतने आँसू आते हैं

जैसे बारिश पेड़ पे आकर गिरती है
वैसे इन हाथों पे आंसू आते हैं

उसके दुख से मुश्तरका है दिल मेरा
उसकी बात से पहले आंसू आते हैं

लोग जहाँ पर जाते हैं खुश रहने को
मुझको उन जगहों से आंसू आते हैं

अच्छी लड़की इतनी बात नहीं करते
इन बातों पे आगे आंसू आते हैं

तुम रोने को तन्हाई के पास गयी
मुझको चौराहों पे आंसू आते हैं

इस घर को तो अबतक गिर ही जाना था
इसकी नींव में जितने आंसू आते हैं

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11 JUN 2022 AT 10:26

रात नदी है साहिल दिन
पसरे हुए हैं बोझिल दिन

आँख खुली है वहशत में
ख़ाबों के हैं कातिल दिन

भूल कहाँ पाते हैं लोग
अपने दुख में शामिल दिन

मुझमें रोया करते हैं
रात गए तक चोटिल दिन

यार मुझे समझाते हैं
कट जाएंगे मुश्किल दिन

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8 DEC 2021 AT 19:43

मुझे पता था कि इक रोज़ घुट के मरना है
जफ़ा की रेत में इन हिज्र के किनारों पर

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5 DEC 2021 AT 20:40

नए लोगों से मिलना और मिलकर राब्ता रखना
ये अच्छा काम है लेकिन है इसमें दुख बहुत ज़्यादा

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27 OCT 2021 AT 21:33

फूल देते हुए मैंने कहा-
तुम खूबसूरत हो

उसने कहा-
फूल खूबसूरत है

हम दोनों ने कहा-
फूल का दिया जाना खूबसूरत है

फूल ने कहा-
वक्त खूबसूरत है

वक्त हमें देख हँसता रहा

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26 OCT 2021 AT 10:43

मैंने कहा-
फूल सफ़ेद है।

उसने कहा-
सफ़ेद, फूल है।

मुझे लगा 'सफ़ेद' उदास है
मैंने कहा।

उसने कहा-
फूल उदास है।

मैंने कहा-
तुम्हारा चेहरा फूल है।

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23 OCT 2021 AT 11:58

अब तो आँखें भी मेरा साथ नहीं देती हैं
रोने की बात पे रोया भी नहीं जाता है

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19 OCT 2021 AT 10:33

झुको तो
किसी बच्चे की तरह झुको
और पृथ्वी को
आटे की लोई की सा थाम लो
उससे चिड़िया बनाओ
कबूतर या खरगोश बनाओ

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10 SEP 2021 AT 5:06

रात की धुन पर बदन का साज़ है
ज़िक्र ए जानां का यहीं आगाज़ है

इस कहानी में नया कुछ भी नहीं
बस सुनाने का नया अंदाज़ है

मैं अकेला ही नहीं बेचैन हूँ
इक नदी, इक रेल की आवाज़ है

ख़ामुशी है दर्दमंदों की यहाँ
रेडियो जैसे कि बेआवाज़ है

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