"कुछ उलझा हुआ हूँ इस कदर आजकल अपनी जिंदगी में... मुझे माफ़ करना। जो कभी एक मौका नहीं छोड़ता था तुम्हारी कद्र करने को... आजकल एक नजर उठाकर देखने तक का वक़्त नहीं है।"
Lines from the poem, "अब वो वक़्त नहीं है" Available on KrishnaKunal.Blogspot.Com
भिखारी को रोटी की भूख है नेता को देश की बेहतरी की भूख है पुलिसवाले को अपराधमुक्त शहर की भूख है शिक्षक को बच्चे के अच्छे भविष्य की भूख है मानव को मानवता की भूख है रब को धरती पर प्यार की भूख है