जो अपना घर हि अपने
साथ लेकर चलते है ,
उन्हें क्या सलाह दोगे ,
ज़िन्दगी जीने की ।।-
कभी खुशियां, गुल्लक में कैद थी हमारी ।
आज गुल्लक का कद आसमान सी बड़ी हमारी
कभी, चीज़ें ज़रूरत हुआ करती थी हमारी ।
अब, चीज़ें नशे की शक्ल ले चुकी है हमारी ।
खुशियों ने भी, नकाब ओढ़ ली हमारी ।
जानें, कब तक टिकेगी बनावटी हस्सी हमारी !-
जीवन का मोल तब जान लिया
जब भूख ने दौलत के बीच रोटी को पहचान लिया।
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मैंने बिकते देखा इंसानो को मजबूरी के बाजार में,
खरीदार थोड़े अमीर ज्यादा थे,
लेन मासूम जिस्मो का,
देन ज़िंदगीभर का गम हो रहा था।-
सलाम आज , हर उस बच्चे के जज़्बे को भी ।
अम्मी-अब्बू , के हर हालात में साथ निभाने को ।
उनके साथ , संतोष का दामन बांधने को ।
अपनी ज़िद्द , की डोर थामने को ।
जितना है , उसी में खुशियां दुंढने को ।
सलाम आज , हर उस बच्चे के जाज़्बे को भी ।
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आसमां में उड़ान भरते, हवाईं जहाज़ का "दीदार"।
ऐशों-आराम की चाह, जो छाए अमीरों के मन-ए-मक़ाम ।
पर गरीब के लम्हों में महज ख़ुशी का है, ये आला इंतज़ाम ।
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वो मस्जिद का शिर्णी भी खाता हैं !!
वो मंदिर का लड्डू भी खाता हैं!!
वो भूखा हैं साहेब •••••
उसे मज़हब कहां समझ आता हैं!!-
भूखे पेट और आसमां का चादर लिए,
घरों मे रामायण और सड़कों पर महाभारत किये।
पलायन हो रहा है श्रम और रोटी की वो भूख,
टूटे सपने और देश की बदनसीबी को कंधे पे लिए।-
ख़ुदा मुमकिन करे कि,
जब हमारे यार दुख में हों,
मेरी सब छीन के खुशियां,
अता कर दो उन्हें मौला।
वज़न जो तौलते पैसों से हैं,
अपनी अमीरी का,
गरीबों की तरह तुम दिल फकत,
दे दो उन्हें मौला।।
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चल माना, पेसो से खुशियां नहीं खरीदी जाती,
लेकिन पैसो से सपने खरीदे जाते है..
तुझे यकीन नहीं आता तो चल
मेरे साथ मेरी बस्ती में,
जहा गुलक के नाम है,
तू मेरी गाड़ी है, तू बेटी की शादी है और तू...
बुढापे की मस्ती है,
मैने ज़मीर को गिरते हुए देखा है,
मैने होनर को बिकते हुए देखा है,
जो कहता है पैसों से खुशियां नहीं आती
मैने लोगो को भूक से तड़पते हुए देखा है..-