शब्द ही तो है, क्या फर्क पड़ता है,
स्याही में डूबे,
तो कहानी,
खुद करू बयान,
तो मेरी जुबानी,
विचार ही तो है, क्या फर्क पड़ता है,
उड़ते गगन में ओंझल सा,
मेरे मन के दर्पण सा,
महज़ एक विचार,
बुनता,
बिखरता,
मेरी पहचान सा,
एक नाम,
नाम ही तो है, क्या फर्क पड़ता है।
- निहारिका यादव
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