जब से हमें अपने परायों की पहचान हो गयी
तन्हा ही रहता हूँ पूरी दुनिया वीरान हो गयी
हँसी के ठहाके गूँजा करते थे जिन गलियों में
अब हाल यूँ की सारी सड़कें सुनसान हो गयी
दिल की सुन उस ओर चल दिया करते थे कदम
ठोकरें जो लगी तो रूह से भी पहचान हो गयी
ख्वाहिशों का बचपना भी चंचल ना रहा अब
उम्मीदों की हकीकत कुछ यूँ जवान हो गयी
बिन झरोखों के उजाले की आस रखूँ कैसे
वो टूटी झोपड़ी मेरी पक्का मकान हो गयी
'मौन' रहकर अब जज्बातों की स्याही बनाता हूँ
हाल-ए-दिल खुद लिखती है कलम महान हो गयी-
भूलकर भी कभी किसी मुसीबत मैं मत पड़ना
खामखाँ अपने और परायों की पहचान हो जाएगी-
वो कहते हैं कि तुम मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते!!
अब कौन समझाए उनको.........
अपने थे इसीलिए जाने दिया अगर पराये होते तो कदमों में होते!!!!-
Galat fehmi ko bata diya jaye to riste nikhar jate hai....
agar nahi bataya jaye to ache khase riste bikhar jate hai.....-
समय की चकरी को देखकर हर शख़्स,
पलट खुद से कर जाता है जुदा।
जिंदगी में दो ही लोग बस अपने होते हैं,
एक खुद और दूसरा खुदा।।
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वाकई अपना कहने को कोई नहीं,
आखिर तो सब यहां पराए हैं
जब जाना ही है एक दिन इस दुनिया से
तो क्यों ही हम यहां आए हैं...-
मैं सबको अपना मानती हूं
इसका मतलब यह नहीं कि मैं हकीकत नहीं जानती हूं-
ज़िन्दगी बीत जाती है किसी को अपनाने में,
फिर भी गलतियाँ हो जाती हैं लोगों को पहचानने में।
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जब अपने हुए पराये
और पराया हुआ सगा है
मुझे 'मौन' रहना ही ठीक लगा है
गैरों से मिले सहारे यहाँ
अपनों ने किया दगा है
मुझे 'मौन' रहना ही ठीक लगा है
पड़ता फर्क नही उससे
जो मिला मतलबी का तमगा है
मुझे 'मौन' रहना ही ठीक लगा है
बंद रही आँखे तो क्या
अब मेरा जमीर जगा है
मुझे 'मौन' रहना ही ठीक लगा है-