ये रात में दिन का नूर कैसे,
दिख रही बहत्तर हूर कैसे,
बांग्लादेश ने पूछा मम्मी से,
तुम्हारे बुर्खे में सिंदूर कैसे।-
How did hearts turn cold as stone, how did minds go blind?
To shoot at souls so innocent, with no mercy in their mind.
They knew no fear of any God, no tremble in their hand,
No face could move them, no tears could make them understand.-
पता नहीं क्या खेल खेला है
क़ुदरत ने..
जो इंसानियत बह गई!
धर्म के नाम पर हिंदुस्तान में ही,
हिंदू होने की…
क़ीमत जो चुकानी पड़ गई !!-
रो पड़ती तो क़लम ख़ून रोती आज,
हर अक्षर में छुपा कोई रुदन कहती आज।
कुछ करती या नहीं
ये सवाल भी शर्मिंदा है,
भाईचारे की गाथा भी
कहीं गुमशुदा जिन्दा है।
थूक पाती तो क़लम
इंसानियत पर थूक देती आज।
संवेदनाएँ भी मर चुकी हैं
रहम की कोई बात कहाँ आज ?
भीड़ में खो गया इंसान,
चेहरों पर नकाब, दिलों में तूफ़ान।
कोई चीखता है चुपचाप,
तो कोई हँसता है लाशों के ख़्वाब।
ये ज़माना पूछे क्या हुआ
बोलो न क्या हुआ तुम्हारी रूह को ?
क्यों मर गया वो जो तुझमें
जीता था कभी बेहिसाब ?-
निगाहों को तुमने ओ मेरी जान-ए-तमन्ना झुकाया है दिल से।
देखकर ये अदाएँ हमने ख़ुदको संभाला है बड़ी मुश्किल से।
कोई नज़र न लगा दे तुम्हारे चाँद से चेहरे को जान-ए-ज़िगर।
अब तक नाम-ओ-चेहरे को तेरे छिपाके रखा है महफ़िल से।
कोई ख़ास वज़ह होगी तभी तो अब तक हम तुम एक न हुए।
इसलिए तो मुक़द्दर को अधूरा बनाके रखा है मुझ क़ाबिल से।
आप अपना कर्म करते जाओ, प्रतिक्षण राम नाम जपते जाओ।
देखना आपका कर्म छीन लेगा सफलता को मुस्तकबिल से।
ये आज का भारत है साहब ये घर है घूस कर दौड़ाकर मारेगा।
वीर बाँकुरे जानते हैं कैसे निकाला जाता हैं चूहों को बिल से।
मासूम लोगों को मारने वाले क़ातिल ज्यादा दिन नहीं बचते हैं।
झूठी वाहवाही के बाद फिर मौत ही बचता है इसके हासिल से।
वो जो धर्म और जातिवाद के नाम पर मासूमों की जान लेते हैं।
वैसों की ही हलक से साँस खींच ली जाती हैं जीवन साहिल से।
हमें न सिखाइए आपसे मेल मिलाप और भाईचारा क्या होता हैं।
हमें इंसानियत नहीं सीखनी है ऐसे ना"पाक" फरेबी संगदिल से।
किसीकी मेहंदी उजाड़ी किसीका सुहाग छीना और अनाथ किया।
मुझे बताओ कि तुम्हारे साथ कौन है? ऐसी हरकतों के क़ामिल से।
इंसान को इंसान नहीं समझे वो बर्बर, जंगली, ज़ाहिल लोग "अभि"।
अंत अब ज़्यादा दूर नहीं है इंसानियत के बैरी जीने में नाक़ाबिल से।-
सोच कर रूह कांप उठता है,
कि जिनके हाथों की लाली तक ना मिटी हो,
उनके माथे की लाली मिटाई गई है ...🥹🥹-