Satyam Purohit   (Untrainedink)
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Bronze - Commonwealth Story Writing
Joined 23 April 2018


Bronze - Commonwealth Story Writing
Joined 23 April 2018
16 HOURS AGO

ये रात में दिन का नूर कैसे,
दिख रही बहत्तर हूर कैसे,
बांग्लादेश ने पूछा मम्मी से,
तुम्हारे बुर्खे में सिंदूर कैसे।

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5 MAY AT 8:42

तस्वीर अधूरी रह जाती है बस रंगसाज़ के ज़हन तक,
बिंदिया से नज़र हटती नही कोई कैसे पहुँचे नयन तक!

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29 NOV 2024 AT 12:56

वेसे तो रुबाई नहीं लिखी जाती नफ़ीस कवाली पे,
पर कल शाम जब तुम दीया जला रही थी दिवाली पे,

मावस की काली रात में भी दिख पड़ा चाँद छत पे,
जब पड़ी नज़र दीये से टिमटिमाती नाक की बाली पे ।

उस पर तेरी मुस्कुराहट बिखेर रही थी चांदनी इस कदर,
कि मेहताब को भी गम रह गया अपनी कंगाली पे ।

उन कजरारी आँखों के काजल को समझ कर बादल,
अफताब जल्द ढल गया तेरे सुर्ख गालो की लाली पे,

सुक्र है सिर्फ मैं ही गवाह रहा उस रात के हुस्न का,
नहीं तो एक और महाभारत छिड़ जाती पांचाली पे ।

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4 SEP 2024 AT 21:22

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2 SEP 2024 AT 19:33

बदनाम शब्द में भी यारों "नाम" बहुत है,
इस दुनिया के तौर तरीकों में हम नाकाम बहुत है,
सुबह के फरेब में बैठे रहते है यहा मुसाफिर,
जुगनुओं को जीने के लिए एक शाम बहुत है।।

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1 SEP 2024 AT 17:10

बहुत ज़िद्दी बना था मैं,

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31 AUG 2024 AT 13:05

मैं कच्ची मिट्टी की ईंटों सा,
तुम संगमरमर की धरोहर हो,
मैं एक कुआँ था जो सुख गया,
तुम शिव का मानसरोवर हो ।।

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31 AUG 2024 AT 0:54

पहले खुद पर तुम विश्वास करों,
अपनी क्षमता का आभास करों,
फिर लक्ष्य को हासिल करने में,
समर्पित एक एक स्वास करो।

यदि कही चूक जो हो जाए,
मन को किंचित न निरास करो,
शांत मनस और स्थिर चित से,
अपनी कमियों की तलाश करो।

खुद को खुद से बेहतर बनाने का,
सदेव ही तुम अभ्यास करो,
जब तक हासिल न हो मंज़िल ,
तुम प्रयास करो, बस प्रयास करो। ।

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30 AUG 2024 AT 9:26

पुष्परज के हर कतरे से मधु प्रचुर निकलेगा,
बारिश की छोटी बूँदों से विशाल पूर निकलेगा,
मद में चूर राह के उन अवरोधों से कह देना,
इस बार पत्थर को फोड़कर अंकुर निकलेगा ।

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29 AUG 2024 AT 10:11

तन्हा हकीकत को मिलता है जब ख्यालों का कुछ सुकून,
यादों की रिमझिम बारिश से खिलता है दिल का कुसुम,
एक तितली मंडराती है फिर उस कुसुम पर कुछ इस कदर,
देखता हूँ उस तितली को तब बहुत याद आते हो तुम।

उदास चेहरे पर आ जाती है पल भर को तबस्सुम।
जब रिमझिम बुँद गिरकर के चेहरे को देती है चूम,
एक बरखा हराभरा कर जाती है बंजर ज़मीन इस कदर,
देखता हूँ उस बरखा को तब बहुत याद आते हो तुम ।

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