सिर्फ तुम
चले जाते महफ़िल में, अपने आप के लिए|
नज़रें अपनी बचा रखी है, सिर्फ आप के लिए|
भीड़ में भी इश्क़ अपना, कहीं खोया ही नहीं |
बस तुम्हारे ही हैं, तुम्हारे अलावा कहीं देखा ही नहीं |
बेवजह अजनबियों से रिश्ता, क्यों जोड़ें |
फ़क्त तन्हाई दूर करने में, क्यों खुद को खो दें |
इश्क़ शिद्दत से हो इस वास्ते, कहीं और सोचा ही नहीं |
बस तुम्हारे ही हैं, तुम्हारे अलावा कहीं देखा ही नहीं |
रिश्ते में जुड़ाव जब, एक से दो हो जाता है |
वो गहरा सा लगाव इश्क़ में, कहीं खो जाता है |
जो गहराई हमारे इश्क़ में है, हमें कहीं खोना ही नहीं |
बस तुम्हारे ही हैं, तुम्हारे अलावा कहीं देखा ही नहीं |
एक झूठ जब रिश्ते में, पनप जाता है |
फिर वो विश्वास कहीं दूर, ठहर जाता है |
बनाया है खुद को हक़दार इसका, इस वास्ते हमें कभी रोना नहीं |
बस तुम्हारे ही हैं, तुम्हारे अलावा कहीं देखा ही नहीं |
Pritam Singh Yadav
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