"गुजर गया मक्खन का दौर, मशीनों में दही देखता हूं।
खत्म कहां जिजीविषा मेरी,लकड़ियों पे हाथ सेकता हूं।
मौकापरस्त कहां मै, मेहनत ही बेचता हूं।
कद्र कला की नहीं, तभी तो सरेराह बैठता हूं...।"
#क्या_साहेब...-
बुजुर्गों के दिल में
दबकर रह जाते हैं
कई किस्से
इस जमाने के
एकाकीपन में
आखिर कहे भी किससे-
वो हरा पत्ता था.. उस सूखे शजर पे,
जो छोर गया वो पत्ता.. शजर भी अब बचा नहीं ।।
-
He is torn between love;
Love for his son &
Love for his wife
Because his wife clearly despises
His daughter-in-law-
पेड़ का तना क्या गया,
डालें तो टूटना ही था,
चार दिन में,
पत्तियों नें भी साथ छोड़ दिया।
पर आज भी जड़,
भोजन के लिए,
डालों,पत्तियों की नहीं,
तने की आश... में है।
अगर मैं,
उसके पास से गुजरता हूँ,
तो अक्सर वो मुझसे पूछती है,
मेरा तना कब आएगा...?
मैं समझ ही नहीं पाता क्या कहूँ...!-
बुड्ढा बुड्ढी पर खत्म कहाँ,
होती सफ़र ये ज़िन्दगी का,
छोटे छोटे कोपल बन कर
खिलते बचपन फिर एक बार।-
You may be growing old with
Every passing day,
But those hands won't ever fall,
While protecting me.
Firm faith lies in your eyes,
Whenever you smile.
You know,
You aren't much,
But
More than enough for me !-
अब बस भी कर राहें जिंदगी
कितना सतायेगी
उम्र थक चुकी तेरी भी
दर्द देते- देते
अब क्या लड़खड़ाती
मेरे कब्र तक जायेगी-
किनारे रख दिया जो दुख अपने सारे
वो कोई और नहीं मां बाप हैं 🙏
और तुम उन्हीं के मिट्टी का बर्तन हो
अब खुद को सोने के समझने लगे तुम😊
रूखा सूखा खिलाकर तुझे नेक बनाया जिसने
उसे पागल बताकर आज वृद्धाश्रम में भेज दिया तुमने😔
बूढ़े माँ पाप तुझे अपने लाठी का सहारा समझते हैं
और तुम्हें लगता है की अब वो तेरे महल में राज करेंगे 😂😔
तू पागल है पगले (भगवान तेरे यहाँ कहाँ बास करेंगे) 😂-