इश्क़ और अश्क़ के दरमियान ज़्यादा फासला नही,
महज़ एक नुक़्ते का ही करम शामिल रहा .........
इश्क़ और अश्क़ की तबदीली में।-
कदम दर कदम हम
रेत की तरह
बिखरते रहे
तपती हुई धूप में
बूंद बन टपकते रहे
तुमने रखा कदम जहां
हम खुद ब खुद
निखरते रहे
तुम्हारी चाहत में
इस क़दर बेक़रार हुए
कभी नुक़्ता
कभी लहज़ा बन
रुकते रहे-
१)रब के अलावा उम्मीद किसीसे मत रखना।।
२)कोई चीज शिद्दत से चाहो और उसके लिऐ कोषिश करो तो वो जरूर मिलती है।।
३)निःस्वार्थ प्यार में हक जताने की ज़रूरत नही होती क्योंकी हम दिल जीत लेते है।।-
नुक्ता हो तुम
मेरी ज़िन्दगी की तहरीर का!!
न हो तो,
इबारतें ग़लत हो जाती हैं!
लफ़्ज़ों की नज़ाकत चली जाती है!
और सारे मायने बदल जाते हैं!!
जब होते हो,तो हर हर्फ़ का
व्याकरण सटीक रहता है!-
देखो ना ज़िंदगी के मज़मून का आख़री फ़िकरा भी आ गया,
पर कम्बख़्त ये रब्त हैं जों नुक़्ता लगाने नहीं देते-
जाने किस हर्फ़ में वो नुक्ते की मानिंद जुड़ा
लफ्ज़ ए ज़िंदगानी के मआनी बदल गया-
Yun ta.aaruf unka, karaen bhi kaise
Unhe bewafa ham, bulaen bhi kaise
Badal den kaise, seerat ulfat ki
Mohabbat pe nukta, lagae bhi kaise-
बेवज़ह शब्दों पे जब नुकता लग जातां हैं,
लफ्ज़ों की शायरी और आदमी शायर बन जाता हैं।
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