बड़ी हमदर्दी से दर्द बाँटने लगा वो मेरा,
बस एक ख़्वाब देखा "बे-ताबीर" सा।-
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आज ख़्वाब की ताबीर कुछ यूं बयाँ हुई,
ख़्वाब में आना उसका हुआ ,और नींद मेरी तबाह हुई।-
कुछ जख्मों को रफ़ू कर लिया आज फ़िर,
फ़िर एक अरसा हो आया मुस्कुराये बग़ैर,-
हूँ मैं मानिंद हर्फ़-ऐ-ख़ामोशी सा,
गर ना पढ़ पाये तो फ़िर लानत है तेरे इश्क़ पर।-
हिज़ाब-ए-हया से त'आरुफ भी कराया मुझे,
है वो बे-लिहाज़ बड़ा फिर ये भी महसूस कराया मुझे।-
फिर लौटा वो मेरे ख़्याल-ऐ-फ़रसूदा की मानिंद,
ज़रा ताबीर करो कोई मेरे ख़्वाब-ऐ-बे'ताबीर की।-
या ख़ुदारा इस दफ़ा ये कैसा हादसा मेरे साथ हुआ,
अजीज़ तो क्या,मेरा आईना भी मेरे ख़िलाफ़ हुआ।-
Gunaah💭
आख़िर उसने ही तोहमत लगा दी मेरे गुनहगार होने की,
जिस के सिवा मेरे पास को गवाह भी ना था।-
पुराने ज़ख्म नायाब ख़ंजर से लगाने चला है मुझे,
ये कमबख्त इश्क़ फिर आजमाने चला है मुझे।-
ताक पर रखे, कुछ धुंध जमे ख़त जला दिए मैंने,
आज वही पुराना जमाना फिर से याद बहुत आया।-