विचारधारा को रूप देता शब्द है....
शब्दों में जब अति हो जाए तो अपशब्द है....
मौन हो कर शब्दों से जाल बनाया जाये ....
तो कैसे मान लू की वो निशब्द है.......
शब्द सदा अनमोल रहे....
शब्द हर भाव का अक्स है....
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भूख के
मारे दो
दाने क्या
खा बैठे...
इंसानों की
बस्ती में हम
अपनी जान
गवां बैठे...-
"कौन कहता है कि हम नशा नहीं करते
आज कल दर्द के नशे में है हम
तुम बताओ क्या लगता है तुम्हे
मेरा जिन्दा रहना मुमकिन तो होगा न"-
यूं शून्य-सा मुझसे रहा नहीं जाता,
यह सूनापन अब और सहा नहीं जाता!
वो दिल से सारा इश्क़ ले गया,
मुझसे सारे मेरे शब्द ले गया!
इस दिल में कोई एहसास तो हो,
बसी हो ज़हन में ऐसी कोई याद तो हो!
चेहरे पर फीकी ही सही पर एक मुस्कान तो हो,
इन धड़कनों में कोई जज़्बात तो हो!
ना कोई गिला रह गया ना ही कोई शिकवा रह गया,
इन ख़ामोश लबों पर कोई अल्फाज़ तो हो!
यूं शून्य-सा मुझसे रहा नहीं जाता,
ये सूनापन अब और सहा नहीं जाता !!
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"गीत नहीं बनना मुझे किसी का, केवल अल्फ़ाज़ बनना चाहती हूं
अरमानों के पंख बटोरकर, कल्पना की उड़ान भरना चाहती हूं
नदियों सा बहना पसंद था मुझे, किन्तु आज स्तब्ध रहना चाहती हूं.
संभव नहीं सबकुछ हासिल कर पाना, कुछ हारकर भी मुस्कुराना चाहती हूं.
जरूरतों को तो कोई भी पूरा कर दे, मै तो सबकी कमी बनना चाहती हूं.
सुख में दुख में जो साथ ना छोड़े, ऐसी आंखो की नमी बनना चाहती हूं.
रुला देती हैं जो अक्सर मुझे, ऐसी यादों को भुलाना चाहती हूं.
बेवजह रूठ जाते हैं कुछ लोग, आज उन्हें भी मनाना चाहती हूं.
दूरियां बढ़ गई है जिनसे मेरी, उन्हें भी अपनाना चाहती हूं.
बातों का सागर भी जिंदा है मुझमें, परंतु आज नि: शब्द रहना चाहती हूं."
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चाहते हैं हम भी
की अब बेवफाई का सलीका सींख लें.....
वफ़ा की बुनियाद पर टिकना
आज बहुत मुश्किल है।😶😔-
शब्द हे मनाचे प्रतिबिंब
की भावना कल्लोळाचे दर्शक ?
म्हणे शब्दांनीच जुळतात माणसं
आणि शब्दांनीच विरतात ऋणानुबंध
शब्दसंपदा पुरेशी असतानाही
मनाला मात्र व्यक्त होता येत नाही,
त्या विसावलेल्या व्यक्तिमत्त्वालाही
कारणे असावेत काही
भीती असावी चुकीचं बोलण्याची
नकळतच नाती विस्कटण्याची,
किंवा आत्मविश्र्वासाचा अभाव असावा
भावणाचिंब शब्द समजणारा श्रोता नसावा
कमी बोलणारी ही व्यक्ती
लोकांना गर्विष्ठ का वाटते ??
निस्वार्थ हीच हे प्रेम शब्दाऐवजी
कृतीतून व्यक्त होते
आपणही व्यक्त व्हावे
असे या अबोल्यास वाटावे,
आणि याच प्रयत्नात त्या अंतःकरणी
काही शब्द उमलावेत
शांत असणारी ही व्यक्ती
विचार हीचे आसमंत,
बरच काही बोलायच असतानाही
शब्दसंपन्न ही निशब्द. . .
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काफी अरसे तक चुप रहने का नतीजा ये निकला,
मेरी कलम को अपनी ज़बान मिल गई..!
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विचारधारा को रूप देता शब्द है....
शब्दों में जब अति हो जाए तो अपशब्द है....
मौन हो कर शब्दों से जाल बनाया जाये ....
तो कैसे मान लूं की वो निशब्द है.......
शब्द सदा अनमोल रहे....
शब्द हर भाव का अक्स है....
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" लफ्जो में ही हुनर रखती हूं तुझे जवाब देने का,
क्योंकि तेरी तरह प्यार में पैतरे हम आजमाया नहीं करते !"-