मन्नते बदस्तूर,
एक पहचान मांगता हूँ |
कुछ और नहीं,
बस एक नाम माँगता हूँ |-
घरों पे नाम थे नामों के साथ ओहदे थे
बहुत तलाश किया कोई आदमी न मिला-
कि मुद्दतों बाद वो टकराया एक शख्स से,
न नाम है ,ना कोई पता इश्क़ करें भी तो करें किस हक़ से
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मुकम्मल नही हो पाता वही तो प्यार होता है।।
धड़कन तो आज भी बढ़ जाता है..
बस तेरे नाम के सुनने का इंतज़ार होता है।-
बड़ा मगरूर मैं उस वक्त हो जाता हूँ,
जब तेरा नाम कुछ यूं पुकारता हूँ,
आकृति.. आकृति.. और बस आकृति।-
इस स्याह रात में,
मेरी सिसकियों से लिखी गयी ये सारी नज़्म
लो एक बार फिर तुम्हारे नाम करती हूँ।
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Wahi shaks mere Laskar se bagawat kar gaya.......jeet kar saltanat jiske naam karni thi
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चलो ना...
एक काम करते हैं...
जिंदगी एक दूसरे...
के नाम करते हैं...-
रेत पर अपनी उंगलियों से...
मेरा नाम लिखने वाले...
अब सामने दिख जाए तो...
पहचानने से इनकार करते हैं...
दोस्ती और मोहब्बत में...
बस यही फर्क होता है...
एक अरसे बाद मोहब्बत भूल जाती है...
और दोस्त गले लगाते हैं...-