जो आवाज़ें
दूर से मीठी सुनाई देती थी,
आज शोर हैं।
ये शहर बहुत शोर करता है।
सोना मुश्किल है,
जागना और मुश्किल।
सुन पाना, नामुमकिन।
मगर देखोगे तो जान पाओगे
ये शहर बातें करता है,
कहता है
" नहीं है
धूप में नहीं, बरसतों में नहीं।
थकना नहीं है
रास्तों में नहीं, मंजिलों पर नहीं।
डरना नहीं है
अंधेरों में नहीं, रातों से नहीं।
खोना नहीं है
झूठ में नहीं, खाबों में नहीं।"
ये शहर कहता है,
सब शोर है।
- सुप्रिया मिश्रा
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