आंसू यूं आये थे कि सनम ने वफ़ा न की,आँसू भी न ठहरे तो हँसी आ गई हमें। -
आंसू यूं आये थे कि सनम ने वफ़ा न की,आँसू भी न ठहरे तो हँसी आ गई हमें।
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कभी लब तलक दिल वो लाते कहाँ थे।वो अपने इरादे बताते कहाँ थे।सबब रूठने के कई थे न रूठे,हमें वो मनाने भी वाले कहाँ थे।तेरी ज़िन्दगी के अँधेरे मिटाते,मेरे पास भी वो उजाले कहाँ थे।लुटी बस्तियों में लुटेरे ही आये,वो आये कोई घर बसाने कहाँ थे।गई ज़िन्दगी ये गई रायगा ही,मुझे ना मिले तुम न जाने कहाँ थे। -
कभी लब तलक दिल वो लाते कहाँ थे।वो अपने इरादे बताते कहाँ थे।सबब रूठने के कई थे न रूठे,हमें वो मनाने भी वाले कहाँ थे।तेरी ज़िन्दगी के अँधेरे मिटाते,मेरे पास भी वो उजाले कहाँ थे।लुटी बस्तियों में लुटेरे ही आये,वो आये कोई घर बसाने कहाँ थे।गई ज़िन्दगी ये गई रायगा ही,मुझे ना मिले तुम न जाने कहाँ थे।
छोड़ न पागल, ख्वाब का बादल, बरसा है न बरसेगा,शाम ढली है, दर्द का कोई, नगमा गा ले, महकेगा। -
छोड़ न पागल, ख्वाब का बादल, बरसा है न बरसेगा,शाम ढली है, दर्द का कोई, नगमा गा ले, महकेगा।
तुम्हारी याद आई तो कहीं पर बैठ जाएंगे,कभी फिर मुस्कुरायेंगे कभी आंसू बहाएंगे।हमें डर है कदम वो जो बढ़ेंगे दूर जाने को,वो जाएंगे जरा कम और ज्यादा लौट आएंगे।हमें तो गाँव जंगल और नदियाँ चाहिए थी ना?तो फिर ये कब हुआ? बम्बई में अपना घर बनाएंगे।हमारे जिस्म के अंदर तो कोई भी नहीं रहता,अगर हम मर गए तो कौन से पिंजरे से जाएंगे।मेरी आँखों मे सागर सात रहते हैं मेरी जानां,तुम्हें ये क्यूँ लगा था सिर्फ तुमको ही बहाएंगे। -
तुम्हारी याद आई तो कहीं पर बैठ जाएंगे,कभी फिर मुस्कुरायेंगे कभी आंसू बहाएंगे।हमें डर है कदम वो जो बढ़ेंगे दूर जाने को,वो जाएंगे जरा कम और ज्यादा लौट आएंगे।हमें तो गाँव जंगल और नदियाँ चाहिए थी ना?तो फिर ये कब हुआ? बम्बई में अपना घर बनाएंगे।हमारे जिस्म के अंदर तो कोई भी नहीं रहता,अगर हम मर गए तो कौन से पिंजरे से जाएंगे।मेरी आँखों मे सागर सात रहते हैं मेरी जानां,तुम्हें ये क्यूँ लगा था सिर्फ तुमको ही बहाएंगे।
मैं उसको मिलाकर के "मैं" बोलता हूँ,वो मुझको हटाकर के "हम" बोलता है। -
मैं उसको मिलाकर के "मैं" बोलता हूँ,वो मुझको हटाकर के "हम" बोलता है।
राह ए उल्फत पे सब नहीं चलते,कोई भी गर नहीं चले, तो फिर?घर जो गर हो शहर में मर जाएं,घर वही राह ए घर में हो, तो फिर? -
राह ए उल्फत पे सब नहीं चलते,कोई भी गर नहीं चले, तो फिर?घर जो गर हो शहर में मर जाएं,घर वही राह ए घर में हो, तो फिर?
बहुत है मुश्किल, हयात तुझ बिन,है तुझ से कहना, सो जी रहा हूँ। -
बहुत है मुश्किल, हयात तुझ बिन,है तुझ से कहना, सो जी रहा हूँ।
यक़ीनन दौर-ए-हाज़िर में सुकूँ के पल नहीं आते,मगर कुछ हम भी ऐसे हैं जबीं पर सल नहीं आते।अकड़ कर वो ही चलते हैं जिन्हें कुछ भी नहीं आता,वही शाखें नहीं झुकती हैं जिन पर फल नहीं आते।कैलेंडर और घड़ियां बेवफा होते हैं, झूठे हैं,सुनहरा कल बताते हैं, सुनहरे कल नहीं आते।सवाल-ए-जिंदगी के सामने इक उम्र बैठा हूँ,सो अब ये जानता हूँ बैठने से हल नहीं आते।सुख़नवर उनको कहिये जो कहें कोई बात बढ़िया सी,हमें कुछ शेर आते हैं मगर अफ़ज़ल नहीं आते। -
यक़ीनन दौर-ए-हाज़िर में सुकूँ के पल नहीं आते,मगर कुछ हम भी ऐसे हैं जबीं पर सल नहीं आते।अकड़ कर वो ही चलते हैं जिन्हें कुछ भी नहीं आता,वही शाखें नहीं झुकती हैं जिन पर फल नहीं आते।कैलेंडर और घड़ियां बेवफा होते हैं, झूठे हैं,सुनहरा कल बताते हैं, सुनहरे कल नहीं आते।सवाल-ए-जिंदगी के सामने इक उम्र बैठा हूँ,सो अब ये जानता हूँ बैठने से हल नहीं आते।सुख़नवर उनको कहिये जो कहें कोई बात बढ़िया सी,हमें कुछ शेर आते हैं मगर अफ़ज़ल नहीं आते।
कभी भी किसी को बताता नहीं हूँ,कि जैसा समझते हो वैसा नहीं हूँ।तुम्हें ये पता भी नहीं है मेरी जाँ,जो तुम हो तो मैं हूँ वगरना नहीं हूँ।धड़कते हुए दिल से पूछा है मैंने,मैं क्या हूँ बता और बता क्या नहीं हूँ।"नहीं" लफ्ज़ हर इक गज़ल में है मेरी,"नहीं" पर किसी से मैं कहता नहीं हूँ।मैं इसको मुहब्बत समझता हूँ गुंजन,जो रूठे कोई तो मनाता नहीं हूँ। -
कभी भी किसी को बताता नहीं हूँ,कि जैसा समझते हो वैसा नहीं हूँ।तुम्हें ये पता भी नहीं है मेरी जाँ,जो तुम हो तो मैं हूँ वगरना नहीं हूँ।धड़कते हुए दिल से पूछा है मैंने,मैं क्या हूँ बता और बता क्या नहीं हूँ।"नहीं" लफ्ज़ हर इक गज़ल में है मेरी,"नहीं" पर किसी से मैं कहता नहीं हूँ।मैं इसको मुहब्बत समझता हूँ गुंजन,जो रूठे कोई तो मनाता नहीं हूँ।
कई रातें बीतीं कई गीत गाये।मगर तुम न आये मगर तुम न आये।लिये रौशनी के दिये चल रहा हूँ,कोई तेरी आँखों से पर्दा हटाये।ये इक हौसला दिल को होता नहीं है,तुम्हें भूल जाये तुम्हें भूल जाये।है उनको भी हैरत तबस्सुम पे मेरे,ये शब का सताया सुबह भूल जाये।बनी एक रोटी थी मुफ़लिस के घर में,सभी ने सभी को निवाले खिलाये।अभी धूप के खेल बाकी बहुत हैं,ये पेड़ों की छाया अभी न बुलाये।न जीने ही देते न मरने ही देंगे,तुम्हारे तग़ाफ़ुल तुम्हारी अदायें। -
कई रातें बीतीं कई गीत गाये।मगर तुम न आये मगर तुम न आये।लिये रौशनी के दिये चल रहा हूँ,कोई तेरी आँखों से पर्दा हटाये।ये इक हौसला दिल को होता नहीं है,तुम्हें भूल जाये तुम्हें भूल जाये।है उनको भी हैरत तबस्सुम पे मेरे,ये शब का सताया सुबह भूल जाये।बनी एक रोटी थी मुफ़लिस के घर में,सभी ने सभी को निवाले खिलाये।अभी धूप के खेल बाकी बहुत हैं,ये पेड़ों की छाया अभी न बुलाये।न जीने ही देते न मरने ही देंगे,तुम्हारे तग़ाफ़ुल तुम्हारी अदायें।