फेंके गए ऊपर से कई फरमान
टूटी किसी की पिंडली,
किसी की रीढ़।
मारे गए सारे 'उल्लू के पट्ठे'।
मैं फिर भी बैठी रही
बाँचती रही कवितायेँ।
(पूरी कविता पढ़ें)
-सुप्रिया मिश्रा-
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आज कल लोग खयालों में ही कपड़े उतार देते है
और आँखों से बलात्कार कर देते हैं
सआदत हसन मंटो उनमें से थे जो उसे कपड़े पहनाने की कोशिश भी नहीं करते,
क्योंकि यह उनका काम नहीं, दर्ज़ियों का काम था ।
उनका काम उन कहानियों को दुनिया के सामने लाने का था
जहाँ उन्होंने कई क़ुरबानी दी और कभी पीछे नहीं हटे
सआदत हसन मंटो के जन्मदिवस पर
उनको नमन करता हूँ उन के जज्बे को सलाम करता हूँ,
अपने जाति से उठ कर मैं ऐसा काम करता हूँ,
वह अच्छे इंसान और महान उर्दू लेखक थे,
मैं उनको कोटि कोटि प्रणाम करता हूँ
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आओ, ख़ुद को इस क़दर बर्बाद किया जाए
एक ज़र्रे को 'मंटो' दूजे को 'जॉन' किया जाए-
तुम ज़माने को,
ज़माना तुमको,
पागल कहा करता है।
आख़िर इतनी "मंटोइयत"
सीखी कहाँ तुमने ?-
We live in a country that could shame a writer when he wrote the intricacies of the unnamed relationships between men and women and all that a women who lends her virginity and borrows disgust for the survival of hunger in her stomach and her child's because she knows that there is no life without pain would want to scream out to the world .
We live in the same country " where prostitution is legal but writing about it isn't ".
//- I wish I could live in an undivided hidustan-
मै चाहता हूं की जिंदगी भर इस शहर का कर्जदार रहूं ।
गुनाह भी ना करू, सच भी रहूं फिर भी गुनहगार रहूं ।।
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"कौन कहता है कि वो मर चुके हैं,
वो ज़िंदा है अपनी लिखी हर कहानी में।"
11 मई,1912- सआदत हसन 'मंटो' जन्मे थे।
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