Kabhi kabhi dil kahta hai sb kah dun saare zaher ugal du , magar kuch lehaaz rakhne padte hain or yahi lehaaaz insaan ko ghut ghut ke marne par majboor kar dete hain.
ये जो मज़दूर होते है अपने घरों से दूर होते है बहुत मज़बूर होते है कभी सड़को पे सोते है कभी छुप-छुप के रोते है अपनों को याद करते है ख़ुदा से फरियाद करते है मगर जो बे-सहारा हो घरों से बे-किनारा हो उन्हें कौन घर देता है यह खतरा कौन लेता है।
शायद रहा होगा कुछ मेरा ही कसूर जो जिंदगी से हो गए हैं हम इतने दूर दूर से देखो तो हँस के जी रहे हैं ये जिंदगी पर किसे खबर कि जीने के लिए हम हैं पल-पल मरने को मजबूर