आ रहे वो हमसे मिलने ये खबर लाई है उनकी झनकती पायल।
दिखे वो नहीं पूरे पहले दिखा उनकी आंखो का काजल ।।
थोड़े शर्मये वो भी हमें देख के ।
थोड़े सकुचाए हम भी उन्हें देख के ।
समझ नहीं आता कि किसने किया किसे घायल ।।
बालो का बनाये हुए जुडा हाथो में पहने वो सुनहरा चूड़ा ।
ये सदगी भरा लिबास जो पहना था उन्होनें लग रहा था वो भी शादी का जोड़ा ।।
गाल शर्म से होन लगे थे लाल
दिल धड़कने लगा मेरा भी देख उनकी चाल ।
शायर भी पनाह माँगने लगे छुपने की
हुस्न ऐसा उनका कि मिली नहीं कोई मिसाल।।
यू उंगली घुमा के चेहरे से बाल हटाने का तरीका ।
माथे पे सजता वो छोटी सी बिंदी का टीका। कुदरत ने बनाये होंगे हाजरों नजारे
मगर उनके आगे हर नजारा है फीका।।
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Hii everyone
its me 😸😸.....(naam bhi btana pdega kya 😼😼)
(chlo chhodo naam me... read more
मैंने तुम्हें देखा और दोनों में तकरार हुआ।।
फिर दोस्ती हुई और मन में इकरार हुआ।।
रहना मुश्किल हुआ जब तुम बिन, हाल ए दिल का इजहार हुआ।।
महिनों गुजर गये साथ में ना जाने कब तुमसे प्यार हुआ।।
जब भी तुम दूर रही मुझसे, मैं मन से फिर बीमार हुआ।।
लाख जतन किए भागने के, पर आखिर सब बेकार हुआ।।
वक्त गुजरा धीरे-धीरे, लंबा मेरा इंतजार हुआ।।
तुझे मुझमें फिर जा के मोहब्बत का दीदार हुआ।।
दूरिया मिटी दो दिलों की, मैं हवा के घोड़ों पर सवार हुआ।।
तन जुदा रहे एक दूजे से, बातों का जरिया तार हुआ।।
खटास भी आई बीच में थोड़ी, मीठा भी सब खार हुआ।।
मगर एक दूसरे से दूर रहना दोनों को ही नागवार हुआ।।
तूने रूप के डोरे डाले, मैं तेरे हुस्न का शिकार हुआ।।
ऐसा फसाँ इस मोह जाल में, हर पल दिल से तेरा ही पुकार हुआ।।
मैं तो वैसा ही रह गया अब तक, तुझपे यौवन का श्रृंगार हुआ।।
जान मेरी अटक गई तुझपे, तू दो धारी तलवार हुआ।।
यू ही अब सब ऐसा ही है और ऐसा ही शायद चले ।
मैं तुझमें बहना लगा हूं अब, जैसे तू नदिया की धार हुआ।।
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शायद वो सही कहते हैं
हमें उनसे प्यार नहीं ।
दूर किया खुद से इतना की
उसके लोटने का भी इंतजार नहीं ।
दुआ है तुम्हें कोई बेहतर मिले
मुझे अब खुद पर ऐतवार नहीं ।
ख़ुश रहोगे तुम हाँ रह लोगे
मेरी चाहत अब यह संसार नहीं ।
फर्क नहीं पड़ता मुझे
ना आंखो से एक कतरा ही बहा
हाँ तुम सही कहते हो
मुझे तुमसे प्यार नहीं ।-
यह रात अब कुछ मध्धम् सी लगती है
बातें तेरी दिल पर मरहम सी लगती है
है यकीन हम मिलेंगें बहुत जल्द
यह दूरी भी अब कुछ कम सी लगती है-
आज उठाई एक अरसे बाद कलम जो मैनें
सोचा कि तेरे लिए एक पैगाम लिख दूं
उलझ के रह गई मैं शब्दों के मायाजाल में
की बिना नाम लिए मैं कैसे तेरा नाम लिख दूं
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महसूस कर तू खुद को
तुझ में बसा अहसास हूं मैं
दूर कहां हूं मैं तुमसे भला
हर पल तुम्हारे पास हूं मैं
दिखाया है तूने हमेशा मुझपे
तेरा वही विश्वास हूं मैं
तुम चांद मैं माटी के समान
तुमसे मिल के हुयी खास हूं मैं
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खेली है जब जिंदगी की बाजी
तो क्या नफ़ा क्या नुकसान है
बन जाता है यहां कोई खुशियों की वजह
तो कोई बात-बात पर जताता एहसान है
दुखी है यहां कोई अपनी तकलीफ़ो से
तो कोई दूसरों की खुशियों से परेशान है
सफलता को ही मिलती है अहमियत सदा
कोशिशों को देता ही कौन पहचान है
उधारी की ही यह साँसें हैं 'काफिर'
वरना किसे पता यहां कौन कितने वक्त का मेहमान है
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हर उगते सूरज को सलाम नहीं मिलता
समेट लो अपने दिल को "काफ़िर"
हर कोशिश को यहां इनाम नहीं मिलता
लाख समझाओ इस दिल को फिर भी
बिना बिखरे इसे आराम नहीं मिलता-
जब वो बेफिक्र बैठे हैं "काफ़िर"
तो तुम क्यूँ फिक्र में पल-पल मरते हो
जीने दो उन्हें भी उनकी तरह उनपे एक तुम्हारा ही हक नहीं
आखिर क्यूँ बेवजह तुम उनके लिए उनसे लड़ते हो-