Nandini Parashar   (नंदिनी पाराशर)
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Joined 24 February 2020


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1 AUG 2021 AT 18:04

अच्छाई-बुराई संवाद
(poem in caption)

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6 JUN 2021 AT 14:49

शिक्षक और सूर्य एक ही समान होते हैं, खुद तपकर दूसरों के जीवन में उजाला ला देते हैं।

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1 APR 2021 AT 22:02

पीड़ित-श्रमिक आवाज़

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29 DEC 2020 AT 14:37

यही जवाब है तुम्हारा...!!!

तुम्हारे जीवन के प्रत्येक तम को माता-पिता ने मिटाया,
आसमां छुआने के लिए अपने कमज़ोर कंधों पर उठाया।
हर पल तुम्हारी प्रसन्नता के लिए वे तुम्हारे लिए जिए,
सारी इच्छाएं अपनी दबा ली तुम्हारी इच्छाओं के लिए।
तुम्हारे कामयाब जीवन के लिए हर विपत्ति से लड़े,
उनके ही घर से निकाल दिया उन्हें, हो गए बच्चे इतने बड़े।
"बस गए हम नए जीवन में, अलग परिवार है हमारा,
चलो अब वृद्धाश्रम", यही जवाब है तुम्हारा....!!!

भूल गए माँ की चीख को जो तुम्हारे दर्द में रोई थी,
तुम्हारी भूख नहीं मन भरने के लिए रातों भूखी सोई थी।
भूल गए जब पिता तुम्हारे लिए खिलौने लाए थे,
त्योहारों पर जैसे मिठाइयों के बाज़ार सजाए थे।
संभाला जिन्होंने तुम्हें आज वो ही तुम पर भार बन गए,
छोड़कर महत्वपूर्ण रिश्ते, तुम्हारे नए संबंध-परिवार बन गए।
"थक गया सेवा करते-करते आप बोझ हो हमारा,
चलो अब वृद्धाश्रम", यही जवाब है तुम्हारा.....!!!

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5 OCT 2020 AT 9:42

Shayad Nahi....

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22 SEP 2020 AT 19:58

ऊंचा उठता देख प्रतिद्वंदी को पंख काटने लगता है
जलन-भेदभाव की भावनाओं में फंस जाता है इंसान।
दूसरों को गिराकर स्वंय को प्रतापी मानने लगता है
भूल जाता है कि स्वयं से ही स्वंय हार जाता है इंसान।

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28 AUG 2020 AT 23:40

क्या युवा वर्ग ये कर पाएगा?

युवा पीढ़ी को देखकर मैं स्तब्ध हूँ, हैरान हूँ।
देश के भविष्य पर चिंतन करके परेशान हूँ ।
क्या देशहित के लिए युवा वर्ग अपना सर्वस्व लुटा पाएगा?
या अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिए देश के प्रति कर्तव्य भूल जाएगा?
क्या नवीन समाज की स्थापना हेतु कठिन मार्ग पर चल पाएगा?
या भ्रष्टाचार जैसी परतंत्र मानसिकता के बीच फंस जाएगा?
क्या गरीबों के जीवन का अंधकार मिटा पाएगा?
या गरीबों पर बढ़ती यातनाएं और बढ़ाएगा ?
क्या समाज में राजनीति की परिभाषा बदल पाएगा ?
या छल-कपट, अन्याय की राजनीति का जाल बिछाएगा?
क्या क्रांति की आग फैलाकर अखंडता की नीव स्थापित कर पाएगा?
या धर्म-जाति के आधार पर भेदभाव करके उन्नति में बाधा बन जाएगा?
क्या जीवन कौशल का विकास करके जीने की कला सीख पाएगा?
या अवसाद में फँसकर आत्महत्या जैसे कदम उठाएगा?
क्या देश की सभ्यता-संस्कृति का मान रख पाएगा?
या पाश्चात्य तौर-तरीके अपनाकर जीवन बिताएगा?
क्या देशहित के विषय पर चिंतन कर पाएगा?
या विदेशों की ओर आकर्षित हो जाएगा?
क्या समाज में नूतन सवेरा लाकर मधुरता भर पाएगा?
या अनैतिकता का उदाहरण बनकर युवा वर्ग समक्ष आएगा?
युवा पीढ़ी को देखकर मैं स्तब्ध हूं, हैरान हूँ।
देश के भविष्य पर चिंतन करके परेशान हूँ ।

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27 AUG 2020 AT 11:07

घातक तूफानों में बिखर जाने वाले नहीं,
हमने जलते अंगारों में चलना सीखा है।
धैर्य, साहस और हौंसलें ही शस्त्र हैं हमारे,
दलदल जैसी ज़िंदगी से निकलना सीखा है।

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15 AUG 2020 AT 18:34

बलिदानों का बिखेरा है, भारत तूफानों का डेरा है।
इतिहास गवाह है बलिदान दिया, अपने प्राणों को कुर्बान किया।
वीरों का प्रण—देश आजाद करना, लड़ते-लड़ते हो चाहे मरना।
हार न मानी सीने में जोश था, उड़ाया जिससे अंग्रेजों का होश था।
आज़ाद भारत की तस्वीर थी, बदलने जिससे अपनी तकदीर थी।
रग-रग में वीरों की आज़ादी थी, भारत भारतीयों की वादी थी।
सब कुछ सेनानियों ने कुर्बान किया, इसलिए सबने इतना सम्मान दिया।
सम्मान का प्रतीक यह सलामी है, जिस पर कुर्बान अनूठी जवानी है।
वह वीर देश के जवान हैं, रखा जिन्होंने देश का मान है।
मरे नहीं वह जिंदा हैं, आज़ादी का उड़ता परिंदा है।
वह हैं भारत के अमर जवान, कर गए जो मातृभूमि के लिए प्राणदान।

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9 AUG 2020 AT 10:34

पत्थर और ईंट से बने मकान को वह घर बनाती है,
स्वयं को घावों और प्रेम के श्रृंगार से सजाती है,
सच्चे, निस्वार्थ तथा निश्चल प्रेम की परिभाषा है माँ,
अपने ममता के आँचल में जीवन कौशल सिखाती है।

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