इक आहट हुई थी आने की,
जिस पल मैं अंधेरे में कैद पड़ी थी
कुछ खुशियों की सीढ़ियां चढ़ी थी
बंद दरवाजे में खुद को कर
अतीत के पन्ने को जला कर,
खुद से खुद की बातें कर
आगे के सुनहरे से कल को सींच रही थी
अकेलेपन से लड़-झगडकर
फिर से नया रूख मोड़ रही थी,
काली अंधेरों के बीच
रोशनी की इक गर्माहट हुई थी,
मानो वो मेरी खुशियों की सरसराहट हुई थी
इक आहट हुई थी....!!
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