फैला कर कचरा हवा में, इंसान का घमंड जागा है,
पूछता है, कुदरत से , बता तूने क्या इस खेत में सजाया है।।-
Kissi ne kaha apki muskurahat bahut achhi hai
Dard zada sahen hain
Ya phir yeh kudrati hain-
कुदरत का , ये कमाल कैसा ।
ज़ुल्म-ए-इंसानियत , सहने का हुनर ऐसा ।
बिना , ऊफ़ के कुर्बान हो जाती ।
ये , रहनुमाई बख्शीश ख़ुदा की ।
ज़मीन से जुड़े रहे ,
पूरी फिज़ा को संभाले ।
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कुदरत की मशक्कत , तो देखिए ।
हमारे मन में , बर्बादी का खयाल-ए-ताज़ ।
जेहन उनके , हर मर्ज़ का इलाज़-ए-साज़ ।
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--Kudrat ka khel--
Har din ki thakaan ko le, rooj raat chaddar odh katam hoti hai,
Ha yehi duniya ka khel jaha zindagi aur maut ki jang hoti hai......
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कुदरत को जो छेड़ा है इंसानों ने
सजा इसकी भयानक मिलेगी
ना दौलत काम आएगी ना किस्मत की चलेगी,
क्या कसूरवार,क्या बेकसूर,सजा सबको बराबर मिलेगी
बिक रहा शुद्ध पानी जैसे बंद बोतलों में,
आक्सीजन बिकेगी ऐसे ही बाजारों में,
पेड़ क्या, हर शाख की कीमत पहचानी जाएगी
एक एक सांस को जब जिंदगी तरस जाएगी ,
प्रकृति का रूप जब बिगड़ जाएगा,
कहीं बेहिसाब बारिश तो कहीं सूखा पड़ जाएगा
तरसेगा कहीं बूंद बूंद के लिए
तो कही पानी मे डूब इंसान जाएगा,
सूरज का ताप कहर ढाएगा
ग्लेशियर सब पिघल जाएगा
समुंदर भी उफान पर होगा
इंसान फिर किधर शरण पाएगा,
हर सांस को जब तड़पेगा,
इंसान फिर खुद ही समझ जाएगा
दिखेगा जब विनाश सामने
घर की छतों पर भी फिर पेड़ पौधे लगाएगा ।-
कौन कितना खास हैं बस ज़रूरतों की बात हैं
भरा कितना एहसास हैं ये सिरत की बात हैं।
जख्म नासूर बन भेद रही हैं अपने अरमानों को
गिराती रहती हैं शोले दिल पे जैसे बज्रपात हैं।
दुनियां का बड़ा दर्द दिल का यहाँ लूटते देखना हैं
देख बर्बादी के बाद भी कहाँ सम्हलते जज्बात हैं।
पिटते हैं तालियाँ लूटते विरासत को देख कर
गोया मज़लिश में मौज़ूद जाहिलों की जमात हैं।
अकड़ रखें क्यूं जाने का तो वक्त यहाँ मुक़र्रर हैं
धड़कने दिल की कुदरत की बक्सी सौगात हैं।-
क्या रह गई आज औकात तुम्हारी,
अब जब घर के अंदर गुजर रही है ज़िन्दगी सारी।
तुमने बेजुबान जानवरों को कीड़ा समझ उनसे आजादी छीन रखी थी,
आज बेजुबान कीड़ा(कोरोना) तुम्हें जानवरों सा कैदी बना रखा है।
आज महसूस कर रहे होगे ना कि कैद में रहकर जानवरों जैसी ज़िन्दगी हो गई है
कल जानवर क़ैदी था आज इंसान क़ैदी है।
तुमको कुदरत ने तो बहुत कुछ दिया है,
कभी खुद से पूंछा है तुमने कुदरत को क्या दिया है?
पीछे मुड़कर देखो तुमने कुदरत के साथ कितनी ज्यादती की है,
उसी के आँचल में रहकर उसी की आबरू छीन ली है।
पतंग, विमान उड़ाकर उनसे उनका आसमान छीन लिया,
पानी मे रसायन मिलाकर उसने प्यास छीन ली।
पेड़ काटकर चिड़िया का घोसला मिटा दिया,
आज आराम से सोने के लिए उसी का पलंग बना लिया
तुम अपनी जरूरतों को पूरी करने के लिए हवा में ज़हर घोल रहे हो,
पर ये क्यों भूल रहे कि तुम अपनी मौत के लिए दरवाजा खोल रहे हो।
याद रखना कर्जदार हो तुम कुदरत के,
ना चुका पाओगे मरते दम तक कर्ज़ उसका।
खिलवाड़ तो बहुत किये है कुदरत के साथ तुमने बहुत बारी,
अब आ गया है उसकी कीमत चुकाने की बारी।
खुदा ने तो कुदरत को सभी के लिए बनाया है ,
लेकिन इंसान ने इसे बस खुद का ही बना लिया है
इंसान का हक है कुदरत पर यह गलतफहमी छोड़ दो,
जानवरों को भी उनका हक पा लेने दो।-
नफरत की इस दुनिया प्यार का सौगात लाये है
चोट खाये दिलोपर मरहम लगाने आये है
क्या मिलेगा इस नफरत से सब को एकदिन जाना है
प्यार के मीठे बोल ही जिंदगी बनाना है
क्या लेकर आये हैं हमे क्या लेकर जाना है
बस दो लब्ज प्यार के हमे गुनगुनाना है
नफरत भरी इस आंधी को प्यार से हमे बुझाना है
बस प्यार समेटे एकदिन दुनिया से हमे जाना है-