Neelu Kumari   (Neelu k.)
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Joined 16 December 2017


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Joined 16 December 2017
8 HOURS AGO

दिल में जिसकी ममता और करूणा बसती है,
सूरत से ज्यादा, सीरत से उसकी खूबसूरती है।

उसकी भावना हीं उसकी प्रार्थना, उसकी भक्ती है।
जो है अंश उस ईश्वर का, उसमें भी वही शक्ति है।

रंगीन पुष्पों, वृक्षों नदियों से संवारती है,
ये धरती अपनी खूबसूरती, प्रकृति में निहारती है।

जो भी बिगड़ा है प्रकृति हीं उसे सुधारती है।
कर्मों का पाठ पढ़ा कर उसको निखारती है।।

सादगी है खूबसूरती, भोलापन है खूबसूरती।
सच्चा दिल है, इंसानों में इंसान की खूबसूरती।

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9 HOURS AGO

तुम्हें अपना सबकुछ नहीं, ख़ुद को हीं खोना होगा।
ऊंचा है मुकाम इश्क़ का, तुम्हें ख़ुद इश्क़ होना होगा।


कैसे मानूं कि हमेशा मेरे रहोगे, तुम्हारी वफ़ा सच्ची रहेगी,
अंजाम तो वही होगा, जो अपनी क़िस्मत ने लिखा होगा।


तुम ने देखा है जिस चेहरे को वो अक्सर नक़ाब में रहता है,
टूटा है वहम और दिल साथ में, तुम ने उसे पूरा न पढ़ा होगा।


दिल का आशियां उजड़ता है तो तकलीफ़ बहुत होती है,
मैंने घर बार छोड़ा है, तुम्हें भी मुसाफ़िर होना होगा।

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YESTERDAY AT 18:54

तुम साथ हो ऐसे, जैसे कोई सहारा होता है।
नदियों से दूर कब, किनारा होता है।

एक दूसरे की खुशबू से पहचाने जाते है हम,
ऐसा असर, एक दूसरे पर, हमारा होता है।

इश्क़ एक रोग है, सबको एक बार हीं होता है।
मेरे किताबों से निकला हर ख़त तुम्हारा होता है।।

नादानी में न तोड़ देना किसी का गुरूर-ए-इश्क,
इसने बड़ी मुश्किलों से आशिकों को संवारा होता है।

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YESTERDAY AT 13:39

याद आ गया कुछ भूली बिसरी यादों में।
अक़्स बाकी है अब भी पीछा करते सवालों में।
कितना फर्क था उसके वादों और इरादों में!

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YESTERDAY AT 0:40

Dear देवदास,
तुम इतना दारू न पिया करो

तुम दारू पी कर टल्ली हो जाते हो,
लगता है दर्पण में ख़ुद को हीं
देख कर डर जाते हो।
मेरी मानो, दर्पण सारे हटा दो घर के।
अच्छा नहीं यूं रहना डर डर के।
पारो के ग़म में मत रहो,
वो चल गई घर पिया के!😄😆

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26 APR AT 15:43

छोड़ दो उसको,
जो वक्त देखकर बदल जाता है।
जो दिल से अपना मानता है,
वो बिन बुलाए भी ग़म बांट जाता है।

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26 APR AT 13:24

कहां चैन है अच्छी बीवियों को, दिन रात खोज में लगीं है।
इस गोल दुनिया में न जाने कबसे, पतियों की अक्ल हीं तो ढूंढ रहीं हैं।😆

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26 APR AT 12:49

*तिनके का सहारा*

कितनी है गहराई इस मुसीबत के समंदर में,
जब हद से बढ़ जाती है, तो समझ आता है।
आधी अधूरी सांसें और बेबसी के पल,
बेसहारा सी ज़िन्दगी हो जाती है।
भला कोई कैसे इन हालात को सह पाता है?
कैसे बिन बोले इस में फ़सा रह जाता है।

कश्ती है, किनारा है, फिर भी कोई बेसहारा है,
जीत के सब कुछ कैसे रिश्तों से हारा है!
टूटी हिम्मत के साथ, कितनी देर कोई रह पाएगा,
वक्त के साथ तो वो और भी डूबता जाएगा।
ये वो रात है, जो दिन पर छायी रहती है।

न कारण समझ आता है, न निवारण समझ आता है।
पर कोशिश जारी रहे तो हल निकल हीं आता है,
डूबते को तिनके का सहारा मिल हीं जाता है।
ये तो सृष्टि का नियम है, समय सबका बदलता है
मुसीबत से हर कोई बाहर निकलता है,
एक तिनका सभी को मिलता है। _ ©Neelu k

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25 APR AT 14:07

* रिश्तों की डोर *

आओ, रिश्तों को फिर से बुनते हैं।
'मैं', 'तुम' नहीं, 'हम' को चुनते है।
तुम धागा प्रेम का लाना,
मैं गांठें उम्मीद की लगा दूंगी।
तुम मोतियां अनमोल पलों के लाना,
मैं उसके साथ विश्वास पिरो दूंगी।
इस तरह रिश्तों की डोर ये अटूट बन जाएगी,
यकीन है मुझे ये वक्त की मार भी झेल जाएगी।

बहुत कुछ खोना पड़ता है पाने के लिए,
बहुत कुछ सहना पड़ता है, निभाने के लिए।
आंखों में आसूं है, तो सपने भी आएंगे,
जो दिल से अपने हैं, संग वो हीं आएंगे।
जो जीते हैं रिश्तों को, वो कम हीं होते हैं,
सच कहूं, जीवन में, वो मरहम हीं होते हैं।
कुछ बातें उनकी बुरी लगे भी, तो सहना पड़ता है।
अपनों को इतना ह़क तो देना पड़ता है।
पर ध्यान इस बात का भी रखना,
कुछ रिश्ते, रिश्तों का केवल नाम लिए होते हैं।
अच्छे बुरे रिश्तों की पहचान भी जरूरी है।
सब के मतलब में फर्क होता है,
इसलिए कोई देता है आंसू और कोई पोंछता है।
जिन रिश्तों की बुनियाद, प्रेम और विश्वास है,
उन्हीं में बाकी, रिश्तों की मिठास है। © Neelu k

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24 APR AT 13:03

झूठी शान, झूठा वो सिर पर ताज था
अपने कर्तव्यों को पहचान न पाया,
कैसा समाज था?
वसुधैव कुटुम्बकम्, सब हैं भूल चुके,
समग्र विकास की राह भला कौन चुने?
द्रवित नहीं होती आत्मा, चित्कार सुनकर
मौन रहता है समाज, निष्प्राण होकर।
इसने नाम छीन लिए, पहचान छीन लिए,
कम पड़ा, तो स्वाभिमान छीन लिए।
आसान नहीं है इस समाज में शुद्ध हो जाना,
तुम्हारा और मेरा बुद्ध हो जाना!

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