मचा है कोहराम, पर हर शख्स मौन है,
ना जाने मेरे मुल्क में, ये रहता कौन है।
देखते हैं दरिंदगी, तो फेर लेते है नज़रें,
पत्थर हैं, इंसान इन्हें कहता कौन है।
है मुफ्त की बिरयानी, हर एक थाल में,
मेहनत-कशी की दाल, पकाता कौन है।
तनहा है हर शख्स, यहाँ लोगों की भीड़ में,
रिश्ते रोज़ ही बनते हैं, निभाता कौन है ।
क्यों आलाप लगा रहा हूँ, बेहरों के कान में,
आवाज़ से मेरी आवाज़ मिलाता कौन है..-
जल रहा था फ़सादों में मेरा शहर, धर्म के नाम पर सारा कोहराम था,
कोई चिल्ला रहा था अल्लाह हु अकबर, तो कहीं शोर में जय सियाराम था।
Jal raha thha fasaadon mein mera sheher, Dharm ke naam par saara kohraam thha,
Koi chilla raha thha Allah hu Akbar, Toh kahin shor mein Jai Siya Raam thha.-
Meri tarah teri bhi zindagi haraam ho jaye
Jo zaahir mere andar ka kohraam ho jaye-
Likhne ko to hum shrab bhi likhtey he
or shbab bhi likhtey he
Kuch you bikhar gai he zindagi ke
Ab jab bhi kalam uthti he
Zindagi ka kohraam hi likhtey-
आखिर कौन दे रहा है अब हवा इस आग को,
घुसपैठियों की तरह घुसा जो आधी रात को।
विद्यार्थी वो जो रखें मोहब्बत तो किताब से,
उत्पाती हैं बने क्यूं भड़का रहे जज़्बात को।
जामिया एएमयू या जेएनयू की बात हो,
बिखरी पड़ी है बू कि मिल रही हवा बबाल को।
हो गंदी सोच पर चोट , बिलबिलाता कौन है,
नीच हैं वो देश से आगे रखते जो जात को।
वो कर के लहूलुहान अमन, दीवार ढूंढते ,
गर सुन सकें तो सुनें लेखनी कोहराम को।
इस समर का कृष्ण कौन कौन अर्जुन व भीष्म है,
चाले चल रहा शकुनी सारी घिस रहा धार को ।
दिख रहे रंग सुर्ख राजनीति के हर इक तरफ़ ,
'बादल' अल्ल्लाह को किया बदनाम किया राम को।
-
फिरते है दर बदर यूं कोई पूछता नही हमदर्द
और जो ही मर गए तो कोहराम मचा दे-
ये अजीब सा सवाल किया है
कि इस संसार मे इक बीमारी ने
कितना कोहराम मचा रखा है
जहाँ देखो वही शमशान बना रखा है
-
Kaun kehta hai tumhara kalam nadaan hai?
Jab bhi is kalam ne kagaz ko chuwa hai
Kasam se kohraam macha gaya hai-
बरी हो आया हूं हर तोहमत से मैं
बस एक उसका इल्ज़ाम बाक़ी है
डूब चुका हूं इश्क़ में तेरे
इस पर होना कोहराम बाक़ी है-
Wo Nigahon Par Sharm Ka
Pada Giraye Rehte Hain
Jhuki Nazar Unki Dil Me
Kohraam Machati Hai-