क्या फर्क पड़ता है हमको ??
किसान ही तो था कर ली होगी आत्महत्या कर्ज से परेशान होकर
मजदूर ही तो है कर ली होगी आत्महत्या .....
वो गरीब ही तो है मर गया होगा भूख से ....
जवान ही तो था मर गया होगा बॉर्डर लाइन पर ....
Sorry for this post. 🙏🏼🙏🏼
But this is the reality of our country..🙏🏼
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!किसान!
खुद्दार बहुत,ज़रा शैतान,गम में मुस्कुराता शानभी है
किसान है माटी की मोहब्बत से परेशान भी है।।
लाख आंधी सहस्र तूफान हिला न सके ऐसी चट्टान है वो,
सूखे की मार सह न सके मजबूर एक किसान है वो।।
खून , पसीना एक करें दिन , दोपहरी , रात वो
कुछ बूंद की आस में , ताकता आसमान वो।
है शिकन माथे पर उसके, तशवीश की लकीर भी,
समर की चिंता है उसे, मेहनत में न की कमी कभी।।
दिल की वेदना तार -तार हृदय उसका चीर गई,
तैयार फसल जब ओला, वृष्टि, सूखे से बर्बाद हुई।।
अथक परिश्रम कर,कृषक दुनिया की भूख मिटाता है
एक अन्नदाता वो भी, बस यही सोच इतराता है।।
अवनि...✍️✨-
बूंद - बूंद बरसात थी, कभी बूंद पसीना
तो कभी बरसात थी, एक मेहनत ही किसान की आस थी।-
किसानों के लिए ही तो
बना कृषि कानून
जब उन्हें ही नहीं मंजूर तो
ये कानून भला किस काम का..
किसान हमारे लिए सर्वोपरि है
वो आंदोलन करते हुए मर रहे है तो
फ़िर ये सोच भला किस काम का..-
"किसान"
वजूद बिखरा पड़ा है सड़कों पर,उसे उठाने वाला कोई नहीं मिला
खिलौना बनकर उतरे हैं वो सड़कों पर, खरीदार कोई नहीं मिला
अमीरी मज़े ले रही है ठंड का, यूं बन्द गाड़ियों में बैठकर,
वो रात बिता रहे हैं सड़कों पर,उन्हें कम्बल देने वाला कोई नहीं मिला।
-rajdhar dubey-
कांधे पर फरहा टांगे
अपने चट्टान से पैरों तले
जमीन को सहलाता जा रहा है
फरूहे कि मुठ पर
टंगी पड़ीं हैं कुछ जिम्मेदारियां
साल भर की भूख मुस्कुराकर
मैले अधफटे गमछे से
उसका पसीना पोंछ देती है
दसवीं पूरी हो गई
अच्छे नंबरों से
अंदर सीने में
एक युद्ध
अनवरत चल रहा है
हाथों में किताबे
और गांव की दहलीज पार
या
चावल के कलश सजे
चौखट पर विदाई
लहराती फसलों को
भ्रम है कुछ और बढ़ने की
उसकी पथरीली सजल आंखों
और फरूहे की धार
से बेखबर हैं
ये पक चुकी फसलें ...।।-
यहां हम को कोन समझता है
मन से सब एक दूसरे से बड़े है
असल में जिंदगी कोन जी रहा है
सब पैसो के पीछे तो पड़े है
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_- किसान और जवान - _
ये किसके साजिश हैं, किसने किया खंडित राष्ट्र अभिमान,
आपस में ही लड़ रहे, आक्रोशित किसान और घायल जवान ।
जिस धरती में बीज बौ, पसीने से हैं सींचता किसान,
उसी धरती की रक्षा खातिर तो, कुर्बान हैं ये भी जवान;
जिस धरती को धरोहर मान, पूजन करता हैं किसान,
उसी धरती को तो मां कह के , पुकारता है ये भी जवान।
दिन-भर धूप में तप कर, जिस मिट्टी को छाव देता किसान,
उसी मिट्टी का तिलक लगा, अंधेरी रात में पहरा देता जवान,
धरा जब हो सुख रही, बूंद-बूंद की आस तरसता किसान,
उन्हीं प्रचंड ग्रीष्म में झुलस, प्यास से व्याकुल फ़र्ज़ निभाता जवान।
अन्न उपजाने वाला अन्नदाता, बिन उकसाए लाठी न उठा सकता,
अपनी कर्तव्य में बंधित जवान, बिन मजबूरी गोली न बरसा सकता ;
बिना घनघोर बादल के , विद्युत् भी ना इतना इतरा सकता,
बिना हवा के कोई पतंग, न आसमान में लहरा सकता ।
एक कवि सिर्फ़ पंक्ति लिख सकता, न अपना शौर्य दिखा सकता,
सीमित रह अपने दायरे में, न उपद्रवियों को दर्पण दिखला सकता ।
एक ही धरा के दो सगे पुत्र, आपस में कैसे लड़ सकते,
एक ही हृदय के दो टुकड़े, एक-दूजे से कैसे बिछड़ सकते;
संस्कार से सम्पूर्ण इस प्राचीन भूमि का नाम हिंदुस्तान हैं,
जहां सम्मान में जवान पांव छुए तो, आशीष देता किसान हैं ।
🖋️🖋️🖋️ Kumar Anurag-
Zindagi gale laga le
Jab bhi koi aapka tang khinche to aap samajh Jana Tanga hi khincha hai
jo aap se Kabhi aage Nahin ho Sakta-