कश्ती समुंदर से छूट गयी
समुंदर के बहाव के कारण
बहाव पर समुंदर का कोई हक नहीं था
सब वक़्त के सहारे चल रहा था ।
समुंदर क्या बताता बेबसी किसी को
वो तो खुद उस आग मे जल रहा था ।
रंग-मंच की की कठपुतलियों की तरह नचाता है ये वक़्त ।
समुंदर की बेबसी का हाल वक़्त ही बयां कर रहा था ।
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इंतज़ार है एक तेरा
कश्ती पे सवार हो
समन्दर की मस्ती भरी लहरों पे चलें
उस नीले आसमान के तले
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लिखने कुछ शुरू किया था,
लिख और कुछ ही दिया।
सवार हुए थे कश्ती मे प्यार के लिए,
उसने तो ग़म के किनारे उतार दिया।-
यूँ हम भी तुम से हाँ तुम भी हम से
दबे ज़ुबाँ कुछ तो कह रहे हैं
हम एक कश्ती के हैं सवारी
हम एक धारा मे बह रहे हैं
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कभी बादल, कभी कश्ती,...
कभी कोई ख्वाब लगती हो...
जब सजती हो तुम-ए-जानम...
हसीं महताब लगती हो...-
वो बारिशों में भी कागज़ की कश्तियाँ
पानी में तैराते रहे
जब तलक साथ रहे मेरी दुनिया
ही संवारते रहे,-
कश्ती ज़िन्दगी की कभी डगमगाती हैं
कभी सम्भाल जाती हैं
ये सिलसिला तब तक ज़ारी रहेता हैं
जब तक मौत नहीं आ जाती हैं।
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जिस्म अपना ही बोझ उठाते थक जाएगा...
सांसो की कश्ती भी डूब जाएगी...
एक दिन ऐसा भी होगा यारों...
यह मिट्टी की हस्ती मिट्टी में मिल जाएगी...-
"सच्चा प्यार"
इश्क़ का नकाब लिए यहाँ, हर तरफ फरेबियों का चेहरा है,
मोहब्बत जिसने सच्ची की ,घाव उसी का सबसे गहरा है।
कहाँ मिलता आसमाँ आजकल, सच्चे इश्क़ के परिंदों को,
प्यार की हर उड़ान पर यहां ,तमाम बन्दिशों का पहरा है।
कान्हा खुद ही खबर रखते हैं, यहाँ राधा के हर दर्द की,
कौन कहता है कम्बख्त , बेइन्तहां इश्क़ गूंगा-बहरा है।
सब कुछ दिया ज़िन्दगी ने ,ज़िद्दी हौसलों के मुसाफिर को,
कदम नहीं रखा जिसने घर के बाहर ,सिर्फ वही ठहरा है।
डूब गयीं वो कस्तियाँ जो, निकली थी तलाश में कल के,
जी लो ज़िन्दगी आज में,खुशी का मौका बहुत सुनहरा है।
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कागज की कश्ती थी ,पानी का
किनारा था।
खेलने की मस्ती थी ,दिल भी ये
आवारा था।
कहाँ आ गए इस समझदारी के
दल दल में,
वो नादान बचपन भी कितना
प्यारा था।
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