कलम में भी एक जान होती है
उसकी स्याही से ही उसकी पहचान होती है-
किस्त भरते भरते तेरी ज़िन्दगी.सकूं का
कहीं मेरा वो कच्चा मकांन नहीं मिला.
बिकबाली में कट गये पेड़ ज़मीं के. फिर
मेरे आँगन में मुझे वो नादाँन नहीं मिला.
शामों शहर जिसका ही ख्वाब देखा मैंने
सपने में भी मुझसे वो इंसान नहीं मिला.
कह रहा कोई के खस्ता हूँ ख्याल मै भी.
वफा के काबिल कोई ईमान नहीं मिला.
इल्जाम शहर पर तलाशी हमारी भी हुई.
दो वक़्त की रोटी का मेरे घर में उन्हें
सामान नहीं मिला.
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हथियार तो कुछ ख़ास नहीं है मेरे पास जनाब,
पर लोग कहते है कलम से क़त्ल करती हूं मैं ।-
तहेदिल से शुक्रिया अदा करतीं हूं इस कलम का जनाब,
जिसने मेरे हर एक एहसास को बेमिसाल लफ़्ज़ों में पिरोया ।-
खामोशियाँ अक्सर कलम से बयां नहीं होती,
अंधेरा दिल में हो तो रौशनी से आशना नहीं होती,
लाख जिरह कर लो अल्फाजों में खुद को ढूंढने की,
जले हुए रिश्तों से मगर रौशन शमा नहीं होती !-
गलतफहमी है उनको की हम उनके लिए लिखते हैं जनाब,
हमारी नज़्म और कलम किसी की उल्फ़त के मोहताज नहीं ।-
☺🌺"मन "...
यूँ तो कई बार टटोला है मन...
बीत गए जाने कितने बरस...
मगर अब जाकर बोला है मन...
किसको, कैसे, कब,क्या लिक्खू ?
कुछ समझ नहीं पाता है...
वही पुराना एक सवाल...
हर बार दोहराता है...
"क्या मुझको लिखना आता है ?"
किस घड़ी मुहूरत शुभ होगा ?
क्या शीर्षक अद्भुत होगा ?
एक उम्र गुजर गई यही सोचते...
ज्यादा नहीं ज़रा सा शायद...
हाँ ... शायद अब भी भोला है मन...
😊"मन"...
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आज भी अज़ीज़ है हमें उनके लिए नज़्म लिखना जनाब,
हमारी कलम और उनकी यादों की गहरी दोस्ती जो है ।-
मजबूत कलम से कमज़ोर रिश्ते लिखने पड़े।
खुशियां तेरे हक़ में गम अपने हिस्से लिखने पड़े।
वो डायरी जो तूने तोहफे में दी थी मुझको,
उसमे तेरी ही बेवफाई के किस्से लिखने पड़े।-