"प्रेम" आसान नहीं है;
इस जीवन की सबसे कठिन साधना है "प्रेम" ।
इसीलिए तो भगोड़े प्रेम से भाग जाते हैं ।
या फिर बेवफ़ाई जैसे शब्दों का सहारा लेकर
पूरी दुनिया के सामने खुद के ही "प्रेम" की धज्जियाँ उड़ाते हैं ।
"प्रेम प्रस्ताव" की स्वीकारोक्ति तो मात्र एक छोटी सी घटना है,
जिसके बाद प्रायः "प्रेम" निस्तेज हो जाता है ।
असल बात तो तब हो...
कि हमारे "प्रेम प्रस्ताव" को ठुकरा भी दिया जाए
तब भी हमारा "प्रेम भाव" तटस्थ रहे
और हम प्रतिपल "आनंद" के नए आयामों को जीएँ।
प्रेम हमें उपलब्ध हो, ऐसा नहीं होता, हो ही नहीं सकता,
हम "प्रेम" को उपलब्ध होते हैं ...
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