तुम... किस्मत वाली हो सिया,
जो खुद को "पवित्र" साबित कर पायी,
वरना कितना ही पुकारो,
आजकल कहाँ प्रकट होती है ?
भगवती पृथ्वी देवी !
जिनकी ममतामयी गोद में
हम समा पाएँ...
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टूटे हुए को जुड़ने का रिवाज़ नहीं चाहिए,
मज़ा है दर्द, दर्द का ईलाज नहीं चाहिए,
दास्तान-ए-इश्क़ में ही ख़ाक हो ख़ामोशियाँ,
लेकिन नये आगाज़ की आवाज़ नहीं चाहिए...-
मैं आँसू का नन्हा कतरा
और समंदर तुम हो,
"हम" से कैसे "मैं" हो जाऊँ ⁉️
मेरे अंदर तुम हो ...-
"ख़ुद की खोज" ने कर दिया है ख़ामोश हमें ,
वरना ख़यालो को गुनगुनाने का हुनर हम भी रखते थे...
उन्हीं की अज़मत* की ख़ातिर, हम हो चले माज़ी*,
वरना रिश्तों को निभाने का हुनर हम भी रखते थे...-
सपने मेरे हैं,
तो उन्हें पूरा करने के लिए मेहनत भी मुझे ही करनी होगी,
ना हालात मेरे हिसाब से होंगें ना लोग...-
करूँ एक छोटी सी फ़रियाद ,
ओ ख़ुदा रखना अब ये याद,
डोर जोड़ चाहे दर्द / प्यार की,
नज़र नवाज़ना आर - पार की ...-
"प्रेम" आसान नहीं है;
इस जीवन की सबसे कठिन साधना है "प्रेम" ।
इसीलिए तो भगोड़े प्रेम से भाग जाते हैं ।
या फिर बेवफ़ाई जैसे शब्दों का सहारा लेकर
पूरी दुनिया के सामने खुद के ही "प्रेम" की धज्जियाँ उड़ाते हैं ।
"प्रेम प्रस्ताव" की स्वीकारोक्ति तो मात्र एक छोटी सी घटना है,
जिसके बाद प्रायः "प्रेम" निस्तेज हो जाता है ।
असल बात तो तब हो...
कि हमारे "प्रेम प्रस्ताव" को ठुकरा भी दिया जाए
तब भी हमारा "प्रेम भाव" तटस्थ रहे
और हम प्रतिपल "आनंद" के नए आयामों को जीएँ।
प्रेम हमें उपलब्ध हो, ऐसा नहीं होता, हो ही नहीं सकता,
हम "प्रेम" को उपलब्ध होते हैं ...
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ज़िन्दगी की क़िताब के आखिरी पन्ने पर लिखी बात,
मन बहलाने के लिए नहीं, गति सुधारने के लिए होती है...-
Attitude is the best precaution
before heart injury,
& I believe that
Precaution is better than prevention.-