अपनी जु़बान खोल तू
जब तक है जान बोल तू।
अब अपने दिल की बात सुन
अपनी ज़बान बोल तू।
तू पढ़ तू बढ़ तू काम कर
तेरी है शान बोल तू।
अब बात कर ज़मीन की
और आसमान बोल तू।
चुपचाप घुटके क्या मिला
जोशे तूफ़ान बोल तू।
कोई मिटा सके न जो
वो दास्तान बोल तू।-
हैवानों के लिए क्या शर्म क्या है लाज,
कत्ल कर ही डाला उसका फिर आज।
किसी को ना हुई खुजली ना ही खाज,
आंखें मूंद लिए बड़े-बड़े शहर के ताज।
नहीं उठाई किसी ने कोइ भी आवाज,
करने लग गए सभी अपने फिर काज।
आएंगे कभी ना लोग हरकतों से बाज,
क्या यही है आदर्श आधुनिक समाज ?-
She asked, “what's my fault
if I was born as a girl?”
(Read caption)
👇👇👇👇-
बलात्कारीयों,
कितने भी सबूत छूपा के रखो
उप्परवाले के पास तुम्हारा हर हिसाब होगा,
मर भी जाओगे ना,तुम्हारी लाश तक
कुत्ता तक न पहुँचेगा।-
कल आसिफा थी
तो आज टविंकल है
कल भी देश की इज्जत थी
और आज भी देश का मान ही है
फिर क्यु कुछ लोग इसे
लेकर जातिवाद फेला रहे है
चाहे अपराध हिन्दु करे
या मुसलमान,
और चाहें पिडीत का
कोई भी धर्म हो
अपराध अपराध ही होता हे
कोई भी जाती इसका
समर्थन नहीं करती
तो इसे जातीवाद का
मुद्दा ना बनाए
और सिर्फ इन्साफ के
लिए आवाज उठाए-
"चलो सुनाती हू आज एक कहानी"
{दिल थाम कर पढ़ना}
👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇
(in caption)
👇-
Jisse khush rehna ka haqq nahi
Jisse khul ke hasne ka bhi haqq nahi
Jo sirf ek saman samjha jaye
Jo shayad kisi ke liye anmol nahi
Wo aaj ke waqt mein
Ek AURAT hai koi or nahi...
Lalat hai ae duniyaan tujhe par
Tu pechan na paya apni kismat
Jiss aurat ko samjh liya tune bas ek pathar
Khass samajh jata tu uski rangat
Wo to wo roshan kinaara hai
Jo sabki smajh mein na aana hai
Jo samjh gaya usse roshan ho jana hai
Or jo na samjha usse wahi dhoob jana hai..
-
कहाँ सोचा था उन्होंने
कल उसकी आवाज़ तक न सुन पाएंगे।
आखिरी बार उसे अलविदा कहने
वो उसकी लाश के पास जाएंगे।
कितने सपने संजोये थे उसके लिए,
कहां सोच था उन्होंने आज वही कांच की तरह आंखों में चुभ जाएंगे।
जिसकी आवाज़ से पूरा घर गूंज करता था,
आज वही जगह सन्नाटों से वीरान लगने लगेगा।
कहाँ सोचा था उन्होंने
कल उसका चेहरा तक भी वो न देख पाएंगे।
अपना दर्द एक दूसरे को बताने
वो नज़रे तक ना मिला पाएंगे।
लोग कहते है निकली थी वो घर से अकेले,
कपड़े भी उसने छोटे पहने थे।
अब बताओ ऐ समाझ के अंधे लोगों,
क्या अब भी लड़की का ही दोष ठहराओगे?
कब तक तुम उन्न दरिंदो की जान बचाओगे,
कभी तो उनको सज़ा दिलाने तुम भी सामने आओगे।
कभी तो हर लड़की को अपनी बेटी समझ कर,
अपने बेटों को उनकी इज्जत करना सिखाओगे।
-
कासा लिए खड़ी हुई
मेरी ही इज्जत को
क्या असीम गुनाह किया
यही पूछूँ मेरे रब को
शर्मिंदा हुई इंसानियत
देखो आज फिर यहा
तो भी मेरी इज्जत से बड़ी
लगती इनको कुर्सी और टीआरपीया
धर्म जात और रंग से
बहोत लड़ लिया ए इंसान
अब मुफ़्लिसि मेरी जिंदगी को
इंसाफ भी देदे तु जरा
ना चाहिए रुपये पैसे
ना ही मेरी जिंदगी
बस फिर से रेप ना हो
यही अरदास आखरी मेरी
-