दुनिया में दर्द के नाप का कोई जंतर नहीं है,
यारों इश्क़ के मर्ज का कोई मंतर नहीं है।
वही झूठे वादे वही इन्तज़ार वही वादाखिलाफ़ी,
मोहब्बत और सियासत में कोई अंतर नहीं है।
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ये भारत जोड़ने वाले नहीं
भारत को तोड़ने वाले है
भारत की अखंडता को
जंतर मंतर के नारों से
छू मंतर करने वाले है-
जबतक मैं जलती नहीं,
मेरी कोई ज़रूरत नहीं,
मेरे जलने से ही मेरा जीवन साकार होता है,
इसलिए ही तो कई बार मेरा बहिष्कार होता है,
जब जंतर-मंतर पर मेरा तिरस्कार होता है,
मेरा भी तो वहां बार बार बलात्कार होता है, अब तो यह ही जीवन है मेरा,
रौशनी देने का कर्तव्य है मेरा,
दुख़ केवल इतना है मैरा,
जाने कितनी निर्भया इस आग में झुलस गई,
मैं तो मात्र एक मोमबत्ती हूँ,
क्या ही होगा मेरा।
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काले को सफ़ेद करने का
न कोई जंतर मिला न कोई मंतर मिला
ऐसे लोगों को तो अब
धरने के लिए जंतर मंतर मिला-
जंतर मंतर और मीडिया
( मेरा उद्देश्य किसी की भावनाओं को आहत करना नही है। पर जिस तरह खेमों में बंटा मेरा देश असल मुद्दों को भुला रहा है,, मुझे सचमुच डर सा लगता है)
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भारत माता का कर्ज चुकाना है,
हमें अपने राष्ट्रभक्ति का फर्ज निभाना है,
8 अगस्त को सभी राष्ट्रवादियों को जंतर-मंतर आना है,
विदेशी कानूनों का त्याग कर पूर्ण स्वदेशी कानून बनवाना है।-
आज फिर तुम्हे रोकना अच्छा नहीं लगा
हर बार खुद को कोसना अच्छा नहीं लगा
इस शाम की घड़ी में तुम आए भी तो क्या
इस शाम तुम्हें सोचना अच्छा नहीं लगा-
जिंदगी ना हुई जंतर-मंतर हो गया,
जिसको देखो हो हल्ला करके चला जाता है-
बॉर्डर तक आकर, अपनी बेबसी गाकर चला गया,
अपने हक़ की खातिर रोया , चीख चिल्लाकर गया,
पानी की बौछारें मिली, लाठी खाकर चला गया,
जंतर मंतर पर नंगे बदन चूहे खाकर चला गया,
उसकी आंखों के पानी से कोई दिल पसीजा नहीं,
उसके हक़ की खातिर कोई भी हाथ उठा नहीं,
अब जो धुँआ घुला आंखों में, साँस लगी थमने,
जब रुधिर शिराओं में लगा जमने,
तब नारे बोल उठे, बैनर हाथ आ गया,
अब देखो दिल्ली को अन्नदाता याद आ गया-
लिखने थे जब मुझे भूख के गीत
मैंने तुम्हारे गीत लिखे
मैं धान उगाता या फिर लिखता गीत
अहम था कि भूखे की भूख मिटें
मैं किसी मंदिर जाता या फिर मस्जिद
दुख था रोटी का ,वो दुःख मिटें
बोने थे जब मुझे धान के बीज
मैंने तेरे लिये फूल चुने
मैं नारे लगाता या फिर बुनता संगीत
ज़रूरी था कि किसी को हक़ मिले
मैं संसद भवन जाता या जंतर मंतर
सवाल था नंगे भारत का ,लिबास मिले
दोहरानी थी जब मुझे चरखे की रीत
मैंने तेरे लिये रेशम के धागे चुने
किसी के लिये लिखना ,प्यार में लिखना
साहित्य की रीत रही है ,कोई नई बात नहीं
देख शवों के अम्बार बदल जाते हों हृदय सम्राटों के जहाँ
कालग्रसित उस युग में प्रेमिका पर लिखना अच्छी बात नहीं
लिखनी थी जब मुझे मानव हठ की जीत
मैंने तुम्हारे गीत लिखे
©️dr.sanjay yadav
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