Kavita Bisht   (कविता)
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मैं रचती हूँ कविता या कविता रचती है मुझे
Joined 23 March 2017


मैं रचती हूँ कविता या कविता रचती है मुझे
Joined 23 March 2017
18 MAY 2020 AT 22:13

उसका चुंबन
मेरे माथे पर
चाहत नहीं है
है ये इबादत
दोनों आंखों
को बंद करके
सबने कलमा पढ़ा
हमने पढ़ ली मुहब्बत

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14 MAY 2020 AT 21:52

जब नील गगन की बाहों में
वो शाम का सूरज ढलता है
तब सिंदूरी से उन रंगों में
तेरे प्यार का रंग दमकता है
देखो तब उस एक पल में
अफ़साने कई बन जाते हैं
तेरे मेरे दिल की धड़कन से
संगीत के स्वर बन जाते हैं


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8 MAY 2020 AT 14:56

गरीब की मौत बड़ा हादसा है या उसका जीवन
या फिर पूरा तंत्र ही एक हादसा
यहाँ वहाँ बिखरी हैं
बीमारी, गैस लीक, ट्रेन से कटकर होने वाली मौत
नहीं! मौत नहीं मृतकों की संख्या
जब मौत, मौत ना रहकर, आंकड़े बन जाए
तब यही कहा जा सकता है
"आदमी होना ही है सबसे बड़ा हादसा"

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6 MAY 2020 AT 21:25

चाँद पूरा है आसमान में
ख्वाहिशें अधूरी हैं मगर..
हम जी रहे हैं तुम बिन
ये जिंदगी अधूरी है मगर..

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5 MAY 2020 AT 21:20

बात करने का सलीका ना आया हमें
उनसे मुहब्बत है ये कहना ना आया हमें...

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5 MAY 2020 AT 18:37

कितना मुश्किल है तुम्हें लिखना
जैसे लिखना उन भावनाओं को
जो अन्तर्मन में छिपी होती हैं
जैसे लिखना उस सुकून को
जो माँ की गोद में मिलती है
जैसे लिखना उस मुस्कराहट को
जो नवजात के होठों पर उभरती है
जैसे लिखना उस रोशनी को
जो घने अंधेरे में दिए जलाने पर होती है
जैसे लिखना उस दुआ को
जो दिल से निकलती हैं..
कितना मुश्किल है तुम्हें लिखना!
उतना ही..
जितना आसान है तुम्हें महसूस करना!

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27 APR 2020 AT 0:38


तुम्हें जी भर देखे अर्सा हो गया
ना तुम आते हो ना तुम्हारे ख्वाब
सुनो....
लाॅकडाउन है,
तुम तो आ नहीं सकते
नींद तो आ जाने दो
इसी बहाने मुलाकात तो हो जाने दो
☺️☺️☺️☺️☺️☺️☺️☺️☺️☺️

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24 SEP 2017 AT 20:14

आज यूँ ही एक खयाल आया है
कोमल सा खयाल..
जिन्दगी कितनी भी बदरंग क्यों न हो
दूर आकाश में बने इन्द्रधनुष को देख
इठला तो जाता ही है मन
अच्छा तुम्हारे आकाश में भी तो बिखरे होंगे ना ढ़ेर सारे रंग
पता है क्या,
मुझे ना छुप्पनछुपाई खेलने का मन हो रा
मैं छुप जाऊँ इनमें से किसी रंग में
तुम खोजो मुझे
और फिर मेरी हँसी की खनक
रंगों में कम्पन पैदा करे
इन्द्रधनुष के रंग बन जायें
सितार के तार
तुम उंगलियों से छेड़ो राग यमन
और मेरी हँसी बन जाये एक प्रेम गीत
जरूरी तो नही ना कि प्रेम कहानी एसी ही हो
कि मजनू के हाथ पर पड़ी बेंत
लैला के हाथ को लहुलुहान कर दे
हो ये भी तो सकता है
कि तुम्हारे आकाश में बिखरे रंग
मेरे आकाश में प्रेम गीत बन बरसें

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24 SEP 2017 AT 17:43

अभी छत पर हूँ
एक दो बूँद आ रही बीच बीच में
वैसे तो धूप दिख रही है
पहाड़ के टुक्के पर
दूर एक फील्ड में
लड़के बालीबाल खेल रहे हैं
सड़क पर लड़कियों के झुंड आ जा रहे
टीशर्ट और ट्राउजर पहनी लड़कियां
इतराती, शोर करती तो कुछ चुपचाप गुजरती लड़कियां
अधिकतर फैशनेबल लड़कियां
इनमें से कइयों को पहचानने लग गई हूँ
वो फलाने फलाने की लड़की है
कितना घमंड में रहती है
अचानक कोई बाईक में किसी लड़के से चिपटी हुई
लड़की निकली है..
सबकी निगाहें बाईक में लगी है
"कौन है ये लड़की "...

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20 SEP 2017 AT 23:21

मर्द
(कविता कैप्शन में)

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