आज फिर तुम्हे रोकना अच्छा नहीं लगा
हर बार खुद को कोसना अच्छा नहीं लगा
इस शाम की घड़ी में तुम आए भी तो क्या
इस शाम तुम्हें सोचना अच्छा नहीं लगा-
अभी काबिल ही कहा हूँ मैं आजमाने को"
एक वादा जो किया हमने निभाया है बहुत
ना रहे साथ फिर भी साथ निभाया है बहुत
इश्क़ का जायका सुना था बहुत तीखा है
चखा था मीठा हर किसी को बताया था बहुत-
लिख दूं मैं तेरे नाम का
खत आज भी अगर
क्या लौट के आएगा
वो पल इंतजार का
आंखों के कैद में
थे वो सपने निकल पड़े
गुल भी मिले
कहीं तो कहीं राहें ख्वार का
छूने चला था
आसमां गिर के संभल गया
करना पड़ा था सामना
उसको भी हार का
तुम ख़्वाब सजाने को
क्या_क्या नहीं करते
मीठा सा दर्द दे गया
तुम्हें खुशियां बहार का-
खुद से मिलने के कभी मौके गंवाया ना करो
तुम अपने आपको औरों से छिपाया ना करो
कई उलझन है कई काम है अपना अपना
वक़्त - बेवक़्त हर किसी को बुलाया ना करो
एक सफ़र ऐसा है खामोशी से चलते ही रहो
ज़रा सा मुस्कुरा के गम को छुपाया ना करो
एक मौका तो दिया जाए जिंदगी को अभी
तलाश खुद की करो वक्त बिताया ना करो
कुछ जज़्बात कुछ ख़्याल कुछ इरादों को
बेवजह आने दो हर बार इसे लाया ना करो-
हा सफर में अगर मैं किसी मोड़ पर
रुक भी जाऊँ तो फिर तू ठहरना नहीं
चार कदमों की आहट से तन्हाइयाँ
लाख कोशिश करें तू बहलना नहीं
है मुहब्बत का अपना अलग ही मज़ा
होश वालों को इसकी खबर ही नहीं
बेखुदी का जो दावा करें रात-दिन
ऐसी बातों से फिर तू मचलना नहीं
कितनी रातें गई , कितनी सुबह हुई
जिन्दगी की किताबों की है दास्तां
उसके आने से रंगीं हुई शाम थी
उसके जाने से फिर तू बदलना नहीं
मैं जहाँ हूँ, सफर में वहीं आज तक
उसकी यादों की मनका संजोये हुए
नाम ले जाऊँ अपनी जुबाँ से अगर
उसके ख़्यालों से फिर तू तड़फना नहीं
खुद को पाया ना खोया ना बर्बाद की
इक तसल्ली भरी जिन्दगी के सिवा
ख़्वाब देखे थे कुर्बत में तुझ संग हसीं
टूट जाये कभी फिर तू सिसकना नहीं
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लिख दूं मैं तेरे नाम का खत आज भी अगर
क्या लौट के ना आएगा वो पल इंतजार का
आंखों के कैद में थे वो सपने निकल पड़े
गुल भी मिले कहीं तो कहीं राहें ख्वार का
छूने चला था आसमां गिर के संभल गया
करना पड़ा था सामना उसको भी हार का
तुम ख़्वाब सजाते को क्या_क्या नहीं करते
मीठा सा दर्द दे गया तुम्हें खुशियां बहार का-
तसव्वुर हो ख्यालों में तो तन्हाई मज़ा देगी
तेरी गलियों में हासिल हो तो रुसवाई मज़ा देगी
तेरी मुस्कान से जाहिर हुआ कि जिंदगी क्या है
है आलम लुत्फ़ का जो मौत भी आईं मज़ा देगी
अवि को गम से या खुशियों से कोई वास्ता ही क्या
तुम्हें जो छुके आएगी वो पुरवाई मज़ा देगी-
कुछ जज़्बात कुछ ख़्याल कुछ इरादों को
बेवजह आने दो हर बार इसे लाया ना करो-
एक रिश्ता हो जो बेनाम हो और प्यारा हो
निबाह करते जिसे खुद को फना कर जाऊं
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