यादें कहा बफरिंग करती हैं,
वो हवा की तरह आती हैं
जो गुज़रे लम्हों को ताज़ा कर जाती हैं।-
दिन और रात को साधे रखती है दोपहर जैसे
कुछ इस तरह तूने मुझे साधे रखा है।
मैं रूठ जाता हूं मैं टूट जाता हूं
देखना तुझसे ही तो मैं मुस्कुराता हूं
ना जाने ना चाहे तुझे यूं ही डांट देता हूं
छोटी-छोटी बातों पर बिफर-सा जाता हूं
लेकिन देखकर तुझको ही तो मैं सुकून पाता हूं।
कर देता हूं अक्सर गलतीया अनजाने में,
उलझ जाता हूं उनको सुलझाने में,
तेरी बातों से सारी मुश्किलें आसान हो जाती हैं,
देखना अनकही बातें भी हल हो जाती हैं-
कुछ ऐसा है इश्क उसका
उनसे शाम को मिलने का वादा क्या हुआ
उन्हें पूरे दिन सूरज से गिला हो गया-
जिस दिन तुझसे मेरी बात नहीं होती
ना जाने क्यों ऐसा लगता है जैसे ही रात नहीं होती
शरीर जरूर थका होता है मानता हूं
लेकिन ना जाने क्यों आंखों में नींद नहीं होती
तू ख्यालों जहन में तो होती है, पर क्यों तू साथ नहीं होती
तू नहीं होती तो ना जाने क्यों ये रात नहीं होती-
बहुत बार कुछ करने के बाद ही समझ आता है
कि क्या नहीं करना चाहिए....-
मैं तेरी आंखों में देखकर
अपनी तक़दीर संवार लूंगा
बशर्त इतनी है
तुम अपनी पलकें मत झपकाना-