"इरादा दिल का"
गुजरता हूँ तेरे शहर से तो अब वक़्त थोड़ा ज़्यादा सा लगता है,
ठहर जाता है दिल मेरा,रुकने का इसका इरादा सा लगता है।
कुछ तो मोह्हबत सा घुला है तेरी गलियों के इन हवाओं में,
रह गया हो अधूरा जैसे ,किया हुआ कोई वादा सा लगता है।
रो देता हूँ अब अक्सर तेरे संग बिताया हर वो पल याद करके,
तेरे बगैर जीने की कोशिश में ,जीवन मेरा आधा सा लगता है।
मेरे सफर का हर रंग तो बस तेरे साथ होने से निखरता था,
हासिल करता हूँ कोई मकाम , तो भी बाधा सा लगता है।
थक सा गया है हर भौरा अब बगीचे के उदासी में उलझकर,
बागों में फूलों का खिलना भी ,अब तो सादा सा लगता है।
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