पुस्तक समीक्षा - तट की खोज
लेखक - हरिशंकर परसाई-
दिवस कमजोर का मनाया जाता है, जैसे महिला दिवस, अध्यापक दिवस, मजदूर दिवस।
हरिशंकर परसाई-
कभी कभी मुझे ये ज़िंदगी
हरिशंकर परसाई का व्यंग लगती है,
एक "क्रांतिकारी की कथा"
जिसमें मानो बस संघर्ष आ ही रहा है,
मगर घबराता हूं कि कहीं समय
मुझे भी मूर्ख न साबित कर दे..-
सत्य को भी प्रचार चाहिए
अन्यथा, वह मिथ्या मान लिया जाता है...
- हरिशंकर परसाई-
"प्रेमचंद के फटे जूत्ते" हमें यह बताते हैं कि
अगर वो भी कहीं Gucci या Adidas के पीछे भागता तो शायद हम एक महान लेखक खो बैठते ॥-
व्यंग्यों के बाण जिनकी तरकश में भरें रहते,
व्यंग्य के पुरोधा-बादशाह हरिशंकर परसाई।-
चाहे कोई दार्शनिक बने साधु बने या मौलाना बने, अगर वो लोगों को अंधेरे का डर दिखाता है, तो ज़रूर वो अपनी कंपनी का टॉर्च बेचना चाहता है।
- हरिशंकर परसाई-
नेता अपने हर भाषण हर उपदेश में छात्रों से कहते हैं-
▪युवकों, तुम्हें देश का निर्माण करना है (क्योंकि हमने नाश कर दिया है)
▪तुम्हें चरित्रवान बनना है (क्योंकि हम तो चरित्रहीन हैं) ।
इन नेताओं पर छात्रों-युवकों की आस्था कैसे जमे ?
- हरिशंकर परसाई
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देश की आधी ताकत लड़कियों की शादी करने में जा रही है। पाव ताकत छिपाने में जा रही है, शराब पीकर छिपाने में, प्रेम करके छिपाने में, घूस लेकर छिपाने में, बची पाव ताकत से देश का निर्माण हो रहा है - तो जितना हो रहा है, बहुत हो रहा है। आख़िर एक चौथाई ताकत से कितना होगा।
~ हरिशंकर परसाई-