हादसा ये है के मौत ही नहीं आती
खुशनसीबी ये के तेरी याद आती है-
मुझको ये आग बुझाने में बहुत देर लगेगी~
मुझसे रिश्तों की क़ीमत ही न पूछ
मुझे आंसुओं का हिसाब भी दे
मुझसे मेरे लायक सवाल ही न कर
मुझे मेरे लायक जवाब भी दे-
कुछ रहा ही नहीं अब मुझ में
इश्क बचा ही नहीं अब मुझ में
मुझ में जो कुछ तेरा था
वो था ही नहीं अब मुझ में
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जब सरहदों पर बेखौफ फूल आने लगेंगे
जब दुनिया के सब बच्चे मुस्कुराने लगेंगे
सितमगरों के आशियां डहने लगेंगे जिस रोज़
जब गलियों गलियों अमन के गीत गाने लगेंगे
मैं लौट आऊंगा तुम पर उधार शामें लिए उस दिन,
अगर लौट पाया तो..-
छोटा सा मन, भर के दर्द-ओ-ग़म से
आहिस्ता-आहिस्ता सा चले जा रहा हूं
मुझे छेड़ो मत, मैं छलक जाऊंगा..-
कुल उतनी ही बार इश्क किया
तुमसे जितनी ही बार मिला किया
जो ना करने के लिए कहा खुदको
हमने बारम्बार वही गुनाह किया
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कभी कभी मुझे ये ज़िंदगी
हरिशंकर परसाई का व्यंग लगती है,
एक "क्रांतिकारी की कथा"
जिसमें मानो बस संघर्ष आ ही रहा है,
मगर घबराता हूं कि कहीं समय
मुझे भी मूर्ख न साबित कर दे..-