निसर्गा 💚   (निसर्गा The Nature)
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Joined 22 November 2019


Joined 22 November 2019

जिनसे उम्मीद न थी सहारे की
वो राही मुश्किलों में साथ खड़े दिखे
जिनपर यक़ीन था हमे खुद से भी ज्यादा
वो साथी मुश्किलों में दे कर दग़ा निकले

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वो आसान लगी समझने में, सरल और संपूर्ण भी
कोशिश की मैने जानने की मगर ठहरी नही वो साथ मेरे
आगे बढ़ रही निरंतर, कह गई रोज़ शुरु होता है नया सफ़र
कोई दिपक सा जलता है निराशा से उठकर

ज़िंदगी हूँ मैं, मेरा रुक जाना ठिक नही
तुम भी चलते रहो साथ मेरे अनवरत..

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कोई देता नही साथ जब ज़िंदगी में अंधेरे छा जाते
कुछ बचाए हुए अधूरे ख्वाब सारे जल जाते

तुम ज़रा हाथ बढ़ाते तो हम भी संभल जाते
जुबां पर आने से पहले शिकायते निगल जाते

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अक्सर
सकते में डालती हैं
हमे
आपकी खामोशी,
कोई संदेह नही
ऐतबार है हमे

मगर कभी
जवाब के बहाने
ही सही
अपनी आवाज़ भी
सुना दिया कीजिए हमे

इस दिल को
तसल्ली रहेगी के आप
गूफ्तगू के क़ाबिल तो
समझते है हमे...

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दिशाहीन तू
यूँ न मन को झूठा
दिलासा दिला

खोज अपनी
राह, लक्ष्य की ओर
तू बढ़ता जा...

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पुछते ही क्यों हो सवाल, जब जवाब सारे जानते हो?
मौन में ही है सबका भला ये तुम भी पहचानते हो ...

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एक बूँद जो,
गिरी धरती पर
सुकून मिला

महकी धरा,
ये हरियाली और
है फुल खिला

भीगी मिट्टी की
सौंधी खुशबू से है,
मन महका...

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हमपर थोड़ा तो
भरोसा कर लिया करो,
कभी हमसे भी
सच कह दिया करो
इन झूठी मुस्कुराहटों से
कुछ नहीं सुलझेगा
हम इंतज़ार में है
के कब तुम तक़लीफ़े बयां करो..

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उस हुस्न-ए-नाज़नीन की तारीफ़ क्या करे
वो मुस्कुराता ऐसे जैसे कँवल खिलते हैं

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एक दफ़ा सोच लेना समाज को दोष देने से पहले,
इसी समाज का एक हिस्सा तुम खुद भी तो हो...

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