जब भी तुम्हें लगें कि तुमने जीत या कामयाबी को परिभाषित कर लिया हैं, जाकर बैठना किसी समुंद्र के किनारे और देखना उसकी तरफ़, जितनी दूर तक तुम देख सकते हो!
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बाहर की लड़ाई के लिए चाहिए होते हैं, तोफ़ और गोलें,
किसी के अंदर के अँधेरे के लिए कोई दिया भी जला दें,
तो वो भी बहुत हैं।-
जीत का श्रेय लेने सब पहुँच जाते हैं माला लेकर;
परिवार, विद्यालय और सारा समाज
फिर किसी की हार को उसकी व्यक्तिगत गलती क्यों माना जाता हैं?-
बचपन में एक ही खिलौने से खेलने वाले भाई, जवानी में एक-दूसरे की गाड़ियों से तुलना करते हैं;
और इन जवान मूर्खों को लगता हैं कि बचपन में वे भोले थे ॥-
जैसे घमंड और आत्मविश्वास में सूत, दो सूत का फर्क होता हैं ठीक वैसे ही अच्छे इंसान और मूर्ख इंसान में भी।
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खेल हमेशा सोच-समझकर खेलने चाहिए क्योंकि सतरंज में चाहें जीतो या हारो,
सजा दोनों पक्षों को भुगतनी पड़ती हैं।-
बुरे कर्मों के अलावा किसी से मत डरिये,
ना घर वालों से, ना बाहर वालों से,
ना समाज वालों से और ना ही धर्म वालों से।-
जिसके पहले ही तीर में निशाना लग गया हो, वह कभी एक अच्छा धनुर्धर नहीं बन सकता।
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किसी से नफ़रत करने का बिल्कुल सीधा और साफ़ मतलब हैं कि उनकी गलती की सजा ख़ुद को देना।
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सकारात्मकता चाहें किसी भी माध्यम से परोसी जा रही हो, ले लेनी चाहिए; फिर चाहें वो धर्म, आध्यात्मक, धंधा, मोटिवेशन, स्वार्थ या किसी भी फॉम में मिल रही हो।
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