Prakash Suthar   (प्रकाश सुथार)
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Don't be a writer; be writing. ✍
Joined 16 December 2018


Don't be a writer; be writing. ✍
Joined 16 December 2018
21 APR AT 18:21

जब भी तुम्हें लगें कि तुमने जीत या कामयाबी को परिभाषित कर लिया हैं, जाकर बैठना किसी समुंद्र के किनारे और देखना उसकी तरफ़, जितनी दूर तक तुम देख सकते हो!

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19 APR AT 21:03

बाहर की लड़ाई के लिए चाहिए होते हैं, तोफ़ और गोलें,
किसी के अंदर के अँधेरे के लिए कोई दिया भी जला दें,
तो वो भी बहुत हैं।

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19 APR AT 20:55

जीत का श्रेय लेने सब पहुँच जाते हैं माला लेकर;
परिवार, विद्यालय और सारा समाज
फिर किसी की हार को उसकी व्यक्तिगत गलती क्यों माना जाता हैं?

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19 APR AT 20:43

बचपन में एक ही खिलौने से खेलने वाले भाई, जवानी में एक-दूसरे की गाड़ियों से तुलना करते हैं;
और इन जवान मूर्खों को लगता हैं कि बचपन में वे भोले थे ॥

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22 JUN 2024 AT 19:29

जैसे घमंड और आत्मविश्वास में सूत, दो सूत का फर्क होता हैं ठीक वैसे ही अच्छे इंसान और मूर्ख इंसान में भी।

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22 JUN 2024 AT 19:24

खेल हमेशा सोच-समझकर खेलने चाहिए क्योंकि सतरंज में चाहें जीतो या हारो,
सजा दोनों पक्षों को भुगतनी पड़ती हैं।

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22 JUN 2024 AT 19:14

बुरे कर्मों के अलावा किसी से मत डरिये,
ना घर वालों से, ना बाहर वालों से,
ना समाज वालों से और ना ही धर्म वालों से।

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19 JUN 2024 AT 19:32

जिसके पहले ही तीर में निशाना लग गया हो, वह कभी एक अच्छा धनुर्धर नहीं बन सकता।

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15 JUN 2024 AT 20:31

किसी से नफ़रत करने का बिल्कुल सीधा और साफ़ मतलब हैं कि उनकी गलती की सजा ख़ुद को देना।

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27 APR 2024 AT 20:01

सकारात्मकता चाहें किसी भी माध्यम से परोसी जा रही हो, ले लेनी चाहिए; फिर चाहें वो धर्म, आध्यात्मक, धंधा, मोटिवेशन, स्वार्थ या किसी भी फॉम में मिल रही हो।

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